खुलेपन की क़ीमत
खुलेपन की क़ीमत
कैसे होंगे वो सब कैसे होंगे उनके मन
कैसी होगी उनकी आशा
उनकी निराशा
कैसा होगा उनका पाचन
किन किन से वो लड़ रहे होंगे
कैसे कैसे सपने
बन बिगड़ रहे होंगे॥
मृत्यु की भयानक
बनती आकृतियाँ
जीवन के बचने की उम्मीदें॥
रोज़ शाम एक
सपना टूटता होगा॥
नींद आती होगी
कि नहीं॥
उम्मीद की बस
एक किरन में लिपटी
आशा,
उन्हें ज़िन्दा रख रही होगी॥
मन कैसे बहला रहे होंगे
क्या ये सूझता भी होगा
कुछ तो है
जो उन्हें शक्ति श्रोत होगा,
उनकी आस्था
उनका विश्वास॥
इधर
गुफा के
इस खुले जंगल में
वहाँ के खुलेपन में
कोशिशें जारी हैं
जो उन्हें सूझ रहा हैं
कर तो रहें हैं।
खुले आकाश में
उन सब को लाने की
जद्दोजहद में॥
कैसा है दोनों का सफर
जो माथे की सिलवटें
सिकोड़ रहा है
हर शाम॥
बची है
एक किरन आशा की॥
शायद सब के सब
हमें मिलेंगे गुफा के बाहर
हमारे बीच, बेशक डरे डरे॥