जंगल की एक रात
जंगल की एक रात
इंसानों की दुनिया में होती हैं कुछ खौफनाक हक़ीक़तें,
भूतप्रेत,घोर अंधेरा, सन्नाटा और भयानक डरावनी रातें,
ऐसी हक़ीक़त का सामना होने से जिंदगी बदल जाती है,
मन के अंदर गहराई तक यह अपनी छाप छोड़ जाती है,
ऐसी ही एक खौफनाक कहानी है दो जिगरी दोस्तों की,
मतवाले थे दोनों मस्ती में चलते थे धूल उड़ाते रस्तों की,
एक दिन दोनों ने जंगल की सैर करने का प्लान बनाया,
सुबह-सुबह निकल पड़े वो घर पे नहीं किसी को बताया,
मस्ती में चलते चलते उनको समय का भी ना पता चला,
भटक गए थे वो रास्ता और अँधेरा होने को भी था चला,
फोन की बैटरी भी हो गई डेड खाना भी हो चुका खत्म,
दोनों मन ही मन बड़बड़ाए ये कहाँ आकर फँस गए हम,
बढ़ता जा रहा था अँधेरा डर मन पर डाल रहा था डेरा,
रोशनी का कहीं नाम नहीं हर तरफ था अँधेरे का पहरा,
दूर- दूर तक फैला सन्नाटा खौफ़नाक लग रही थी रात,
ऐसे में एक दोस्त दूसरे से करने लगा भूत प्रेत की बात,
पहला दोस्त बोला ये प्रेत आत्मा सब बेकार की बात है,
चलो ढूंढते हैं कोई ऐसी जगह जहाँ हमें बितानी रात है,
दोनों जगह ढूंढ़ते ढूंढते निकल चुके शहर से काफी दूर,
पर कोई सुरक्षित जगह ना मिली थक गए दोनों भरपूर,
थक कर बैठ गए जब दोनों तभी एक आवाज़ आती है,
सामान्य नहीं थी वो आवाज़ कुछ डरावनी सी लगती है,
पहले दोस्त ने दूसरे से कहा क्या तूने सुनी कोई आवाज,
मुझे तो लगता है यहाँ ज़रूर कोई प्रेतात्मा करता है वास,
दूसरा दोस्त बोला नहीं यार ये होगा कोई जंगली जानवर,
तू अभी से डर रहा है ये आवाज़ें तो आएंगी यहाँ रात भर,
जैसे ही दोनों बेफिक्र हुए फिर वही अजीब आवाज़ आई,
इस बार आवाज़ और भी भयानक थी कानों को चीर गई,
धीरे-धीरे वो खौफनाक आवाज़ उनके करीब आ रही थी,
"कौन है तू क्यों आया है यहाँ" बार-बार यही कह रही थी,
पत्तों की चड़मराहट के साथ अँधेरे को चीरता एक साया,
अचानक सामने आ गया दोनों में से कोई समझ ना पाया,
सामने साया देख दोनों के पैरों तले से ज़मीन खिसक गई,
वो भयानक मंजर देख चीख भी अंदर ही दब कर रह गई,
भयानक बदसूरत चेहरा डरावनी आवाज़ दहकती आंखें,
बोली, तुम ही कह रहे थे ना कि बेकार है भूत प्रेत की बातें,
दूसरा दोस्त जिसने ये कहा था बोलने की हालत में ना था,
पर सुन रहा था सब और देख कर यकीन भी आ गया था,
तभी साया बोला मैं आत्मा हूँ बीस साल से भटक रहा हूँ,
अमावस की रात जो यहाँ आता है मैं उसको खा जाता हूँ,
कई वर्षों से जानवरों का खून पी- पीकर मैं थक चुका हूँ,
आत्मा डरावनी आवाज में"इंसानी खून को तरस रहा हूँ",
यह सुनते ही दोनों दोस्तों का शरीर बर्फ सा जम गया था,
करें तो क्या करें अब सामने मौत का द्वार खुला पड़ा था,
डर दिमाग में ऐसा बैठा कि कुछ सोच भी ना पा रहा था,
मौत को करीब देख एक दूसरे का हाथ पकड़ लिया था,
सोचा आज अगर मरना ही है तो हम दोनों साथ ही मरेंगे,
स्तंभ खड़े दोनों उन्हें लगा वो प्रेतात्मा से नहीं बच पाएंगे,
बुरी शक्तियाँ अंधकार में सबसे ज्यादा ताकतवर होती है,
किंतु उजाला होते ही उनकी शक्तियाँ समाप्त हो जाती हैं,
ऐसा ही कुछ हुआ उस रात दोनों की किस्मत अच्छी थी,
बच पाएंगे उस साये से आज ये बात ना उन्होंने सोची थी,
दोनों के घरवाले उन्हें ढूंढते हुए जंगल तक पहुंच गए थे,
मशाल थी उनके हाथों में धीरे- धीरे नज़दीक आ रहे थे,
घरवाले जब पहुंचे वहाँ दोनों बने हुए थे पत्थर की मूरत,
डर बैठा था ऐसा दिमाग में कि फीकी पड़ गई थी सूरत,
सभी डांट रहे थे दोनों को पर उनको सुध- बुध कहाँ थी,
वही शब्द गूंज रहे थे दिमाग में वही तस्वीर बैठ चुकी थी,
कहाँ गया वो साया वो खौफनाक मंजर दोनों ही थे हैरान,
शरीर अब भी स्तंभ था आख़िर क्या था वो भूत या हैवान,
उस भयानक घटना को बीते आज बीत चुके हैं दस साल,
पर आज भी दिमाग में उसी घटना का बुना हुआ है जाल,
एक दूसरे के अलावा किसी से इसका जिक्र नहीं किया है,
पर इस घटना ने दोनों के दिमाग पर गहरा असर किया है।