STORYMIRROR

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Horror

4  

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Horror

अपराध और रात

अपराध और रात

1 min
223

अपराध और रात का एक अजीब सा नाता है 

रात का सन्नाटा अपराध की कहानी सुनाता है 

न जाने कितनी बहन बेटियों की चीख दबी है 

न जाने कितनी आत्माऐं रात में यहां भटकी हैं 

लोग कहते हैं कि रात में "निशाचर" घूमते हैं 

मानवता के आंसू अपराधियों के चरण चूमते हैं 

लूट , हत्या, चोरी , डकैती सब मौज करते हैं 

नर पिशाच मद्य और मांस का भोज करते हैं 

यह भी सुना है कि रात में "नंगा नाच" होता है 

वेश्याओं का दिन तो रात से ही आगाज होता है 

रजोगुण और तमोगुण रात में निर्द्वंद्व नृत्य करते हैं 

सतोगुण बेचारे किसी कोने में पड़े पड़े सुबकते हैं 

हर इंसान में एक अपराधी छुपा हुआ होता है 

अकेले में ही किसी के चरित्र का पता चलता है 

सबके सामने तो लोक लाज से मर्यादा में रहते है 

मगर अकेले में जो न भटके उसी को साधु कहते हैं 

मन बड़ा चंचल है धन दौलत, स्त्री पर डोलता है 

ज्यादा पैसा सदैव ही दिमाग में चढकर बोलता है 

पुलिस, न्याय व्यवस्था सब जगह भ्रष्टाचार है 

आम आदमी दहशत में है, गुण्डों में हर्ष अपार है। 



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Horror