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Nand Lal Mani Tripathi

Horror Romance Action

4  

Nand Lal Mani Tripathi

Horror Romance Action

चुनियाँ बन गयी चाँदनी भाग -एक

चुनियाँ बन गयी चाँदनी भाग -एक

50 mins
303


मुसहर परिवार के लगभग सभी लोग बाबू साहब लोगो के यहाँ चाकरी करते महगु मुसहर भी मनुहार गाँव के मुसहर परिवारों का मुखिया या यूँ कहे की रूरल बौरिस्टर था मुसहर समाज अपनी हर समस्या के लिये महंगू के पास जाते महंगू उनका उचित समाधान देते महगु की पकड़ बाबूसाहब लोगो के यहाँ भी खासी थी मुसहर और बाबूसाहब लोगों के बीच किसी प्रकार के समन्वय के लिये या समायोजन के लिये मंहगू महत्व्पूर्ण कड़ी थे। महंगू की एक बेटी लाडिली चुनिया को घर में भरपूर प्यार इज्जत मिलाता चुनिया को पढ़ाने का शौख महंगू के साथ साथ भाईयो को भी था चुनिया पांचवी जमात पास कर जूनियर हाई स्कूल में पढ़ने गयी चुनिया के साथ ही सत्यब्रत का भी एकमात्र बेटा सुजान सिंह पढ़ता था पांचवी जमात तक तो बच्चों में क़ोई समझ नहीं होती मग़र ज्यों ज्यो बड़े होने लगते है समझ का स्तर बढ़ने लगता है सुजान चुकी गाँव के राजपूत परिवार से था और चुनियां मुसहर परिवार से दौलत और जाती का फर्क चुनिया और सुजान को अलग नहीं रख पाया।दोनों स्कूल में एक साथ क्लास में बैठते बाते करते और हर वक्त साथ रहते केवल गाँव के सीवान से अलग होकर दोनों अपने अपने घर चले जाते।पता नहीं दोनों की बचपन की दोस्ती कब प्यार में बदल गयी।आठवी क्लास पास करने के बाद सत्यब्रत ने सुजान का एडमिशन कस्बे के इंटर कालेज में करा दिया चुनियां में बापू महंगू ने चुनियां से कहा लिखे पढ़े के जान लिहु नाम लिख लेतु अब ज्यादा पढ़ कर का करिबे हमन के समाज में पढ़े लिखे लरिका मिलते नाही बाकि तू पढ़ी के का करिबे वियाह शादी कर् देत हई ससुरारी जाईके चौके चूल्हा त् करे का बा चाहे कौनो बाबू साहब के चाकरी एकरे आलावा हमारे समाज में आज तक कुछ केहू ना कई पाईलस छोड़ फालतू के बवाल अब घर गृहस्ती सिख कुछ दिन बाद तोहे ससुरारी जाए के बा चुनियां अन्तर मुखी व्यक्तित्व थी उसेने कभी भी बापू महंगू के किसी बात का कभी जबाब दिया था।

मगर मन ही मन बापू के विचार का उग्र विरोध मन में दबाये घर में चली गयी शाम महंगू अपनी प्यारी बिटिया को बिना खाना खिलाये खाना नहीं खाता था उस दिन शाम को खाना खाने बैठा तो उसने चुनिया की माई से पूछा चुनिया कहाँ है रोज तो हमारे खाने स पहले ही बैठ जाती थी चुनिया की माई रमिया ने कहा आज चुनिया नहीं आएगी महंगू ने पूछा काहे नहीं आएगी रमिया ने बताया की जब तक बापू उसका एड्मिसन पढ़ने के लिये कक्षा नौ में नहीं करा देते तब तक वहः खाना नहीं खायेगी।महंगू को बहुत तेज दिमाग गरमा गवा तेजी से वहां पहुंचा महंगू जहाँ चुनिया ने कोप में रौद्र रूप धारण किया था महंगू ने जब लड़ली बेटी का रौद्र रूप देखा तब उनका माथा की गर्मी कुछ कम हुआ बोले चुनिया तू आज खाये काहे ना आयी चुनिया पहले तो मन नही है भूख नहीं है कह कर बात टालती रही फिर महंगू खुदे बोला तोर माई रमिया कहत रही तोरा जब तक एडमिशन कक्षा नौ में ना होई तब तक ते खाना ना खाबे चुनिया बोली माई सहिये तो कहत रही बताओ बापू हम काहे नाही पढ़ सकती है महंगू बोला देख बिटिया एक तो हमारी औकात नाही है की हम तोरा एडमिशन कराई सकी आगे पढाई सकी अगर कौनो ना हिम्मत जुटाइ लेइ तो हमारे मुसहर समाज में पढ़ल लिखल लड़िका नहीं मिलत बड़ी परेशानी कड़ी होई जाई और जुग् ज़माना ख़राब ह कही उंच नीच पैर पड़ी गइल त् अलग परेशानी बिटिया तू बड़ी भोली बाटूँ तोहे दुनियां क समझ बहुत नाही बा तमाम तरह के जलिमन से जमाना भरल पड़ल बा चुनिया को महंगू ने बहुत समझने की कोशिश की मगर चुनिया पर त पढे क भूत सवार रहा उ बोली जवन होइजा हम तब तक नाही खाईब जब तक हमार एड्मिसन नहीं होइ जाई चाहे मर जाई महंगू जब चुनियां के मुँह से ई बात सूना त् वकरे पैर से जमीन खिसक गयी उसने सपने में भी नहीं सोचा था की वकर भोली सी बिटिया एतना कठोर होई जाई महंगू खुद को सँभालते हुए बोला रे बिटिया मरे वरे के अशुभ बात जिन कर चल खाना खा ले तोर एडमिशन हम कौनो बिधा कराब बापू के मुह से एडमिशन की बात सुन चुनिया खुश हो गयी और खाना खाने के लिये बापू महंगू के साथ ख़ुशी ख़ुशी चल दी जब चुनिया और महंगू खाना खाने बैठे तो रमिया ने पूछा बाप बेटी में समझौता हो गईल बड़ा जल्दी महंगू रमिया से बोला जानत नाही हाउ चुनियां क माई चुनिया बहुत समझदार होई गईल बा हम उकेरे सामने हारी गईंन समूचा मुसहर समाज हमार कौनो बात नाही टालट बात टाले के बात दूर कौनो सामने खड़ा होइके भर मुंह बात नाही करत मगर अपनी झीन भरीके बिटिया से हम हारी गएन् दुनियां में झूठे नाही मसहूर ह की जो कही नहीं हारत वोके आपन ख़ास हरावत।चुनिया महंगू के खाना खाने के बाद रमिया ने खाना खाया और सोने चले गए महगु सुबह उठा और सूरज निकलते ही बाबू साहब के दरबार में पहुँच गया बाबू सत्यब्रत सिंह ने अल सुबह महंगू को देखा तो हैरत में पड गए बोले कारे महंगुआ अल सुबह का मुँह लटकाये चला आया।

अमूमन तू दुपहरिया में आवत ह आज अल सुबह का बात है महंगू बोला मालिक बहुत बड़ी समस्या चुनिया खड़ी कईदेले बा उ कहत बा हमार एड्मिसन नौ में कराव नाही त हम मरी जाब आप त जानत है हमरे मुसहर समाज में लोग पड़त लिखत नहीं है आपै लोग की चाकरी खेती बारी अधिया बटाईया जोत बोई क गुजारा करीत है चुनिया के भाई भी कौनो आठ जमात से ज्यादा नाही पढ़ेंन बाकिर इ लड़की जिद्द कई दिहले बा मालिक आप जनते हईं की एक त लड़की जाती कही उंच नीच होई जाय नाहिये होय त् हमार बेवत नाही बा की हम चुनिया के पढा सकी अब हमारे समझ में नहीं आवत की हम का करी मालिक आपे कुछ राह देखावे सत्यब्रत सिंह थोडा गंभीर होते हुए बोले देख महगु हम एमा का कर सकित तोहरे घर का मामला है हम एतने बता सकित है की पढ़ावे लिखावे में कौनो बेजाय नहीं है बाकिर तोर मर्जी महंगू बोला मालिक उ त ठीक है मगर हमार औकात नाही बा की ठाकुर सत्यब्रत बोले देख महंगू चुनिया के पढ़ावे लिखावे की जिम्मेदारी हम ले सकित है वोके लिये तोके या तोहार कौने बेतवा क हमारे चौउवन का सानी पानी करे क पड़ी महंगू तब से बोला मालिक हमे मंजूर है ठाकुर सत्यब्रत सिंह बोले सोच ले महांगुआ ऐके दिन क बात नाही बा महंगुआ बोला मालिक एमा सोचे का बा हम सोच विचार क आप क बचन देत हई एका निभाएब् ठाकुर सत्यब्रत सिंह बोले ठीक बा काल चुनिया क लेके स्कूल पहुच ठीक दस बजे हमऊ पहुँच जाब महगु ठाकुर साहब के यहाँ से लौट कर् घर पहुंचा तो अपनी लुगाई रमिया से बोला कहा है चुनिया अब वोक चिंता के कौनो बात नहीं है जब तक पढे चाहे पढे अब चिंता क कौनो बात है तब तक चुनियां वहां आ धमकी चुनिया को देखते ही महंगू बोला की सुन चुनिया काल अल सुबह तैयार हो जाय हम तोर नाम लिखावे स्कूल जायके बा चुनिया बापू को सुनकर बहुत खुश हुयी और अपने बापू की बात सुनकर बहुत खुश हुई और बापू से लिपट कर ख़ुशी में रोने लगी यह देख कर महंगू को समझते देर न लगी की पढाई को लेकर चुनियां कितनी गंभीर है उसको अपने निर्णय पर आत्म संतोष और सुकून की आतंरिक अनुभूति हुई।दूसरे दिन अलसुबह चुनिया तैयार हो गयी और बापू महंगू के साथ स्कूल के लिये घर से निकले गाँव से चार किलोमीटर दूर था पैदल ही दोनों एक घंटे में बतियाते पहुँच गए और बाबू सत्य ब्रत का इंतज़ार करने लगे लगभग एक घंटे इंतज़ार के बाद ठाकुर सत्यब्रत जी भी पहुँच गए।

स्कूल भी खुल चूका था प्रधानाचार्य परमार्थ तिवारी भी पहुँच चुके थे ठाकुर सत्यब्रत सिंह जी के साथ चुनियां और महंगू एक साथ प्रधानाचार्य परमार्थ तिवारी के कक्ष में दाखिल हुये परमार्थ तिवारी जी अपनी कुर्सी से उठ खड़े हुए और ठाकुर सत्यब्रत जी का स्वागत करते हुए कहा हमारे विद्यालय के भाग्य खुल गए की आप स्वयं पधारे आप आदेश करे हम आपकी ख़ुशी सन्तुष्टी के लिये क्या करे।ठाकुर सत्यब्रत सिंह जी बोले ये चुनिया है ये है महंगू मुसहर आपतो जानते ही है की मुसहर समाज की रूचि शिक्षा में नहीं रहती इस समाज को अपनी पुस्तैनी मजदूरी में ही मज़ा आता है और ये उसी में जीते मरते खुश रहते है मगर चुनिया को पता नहीं कहाँ से पढ़ने का भूत चढा है सो हम इसका एडमिसन कक्षा नौ में कराने आये है परमार्थ तिवारी बोले ये तो बहुत अच्छी बात है यदि देश के हर बडे छोटे उंच नीच समाज की कन्याये चुनियां की तरह सोचने लगे तो आने वाले दिनों में समाज में शक्तिशाली नारी शक्ति का अभ्युदय होगा और देश तरक्की के मार्ग पर आगे बढेगा और मजबूत राष्ट्र बनेगा आप देख नहीं रहे है नेहरू जी की प्रियदर्शिनी इंदिरा जी को ठाकुर सत्यब्रत सिंह के सर से प्राचार्य परमार्थ तिवारी की बाते गुजर गयी वो तो वो तो अपने चौऊवन के सनी पानी के लिये मनई चाहत रहेन ईश्वर की कृपा की चुनिया पढे क जिद कई लिएस महंगू फंस गए मिया गाँव में छोट विरादरी में एकी बहुत इज़्ज़त है ख़ास कर मुसहर समाज में ई ससुर अब् प्रधानी की चुनाव में बोली नाई सकतन ठाकुर सत्यब्रत सिंह मन ही मन सोच बहुत खुश हो रहे थे तभी प्राचार्य परमार्थ तिवारी बोले का बात है ठाकुर साहब का सोच रहे है ठाकुर साहब का ध्यान एकाएक टुटा और बोले आप सही कह रहे है प्राचार्य जी चुनिया एक न एक दिन मुसहर सामाज और जिले जवार का नाम रोशन जरूर करेगी अब आप एकर एड्मिसन क आवश्यक कार्यवाही पूर्ण करी जल्दी प्राचार्य परमार्थ तिवारी ने तुरंत ही बाबू ऋषि देव दुबे को बुलाया और एड्मिसन की आवश्यक कार्यवाही पूर्ण कर एड्मिसन कर् लिया ।ठाकुर सत्यब्रत सिंह अपने घोड़े पर बैठ कर चले गए चुनिया और महंगू पैदल ही घर के लिये चल पड़े चुनिया अपने बापू का अपने बाल भावनावो से आभार व्यक्त करती रही पुरे रास्ते बोलती रही बापू आप दुनियां में सबसे अच्छे बापू है कोनो बाप अपनी बिटिया की खातिर इतना कष्ट आज कल के जमाने में कौनो बाप नहीं करते फिर एकाएक उदास होकर बोली।

आपने हमारे पढाई की खातिर अपने आपके ठाकुर साहब के पास गिरवी रख दिया हम ई बातके मरत दम तक नाही भूल सकती अगर भगवन हमे कुछो जिनगी में बनईहन हम आपके इज़्ज़त खातिर जिनगी जीयब भगवान् से इहे मांगब की हे भगवान् जेतने बार हम जन्म लेई हमार बापू तू ही हो चुनिया बोलते बोलते भाउक होकर रोने लगी महगु के एकाएक लगा की बिटिया बहुत भाउक होइके रोई रही है तब बोला चुप पगली कौन बाप अपनी संतान खातिर नाही उ करात जउन वकरे बस में रहत है और का कहत रही की हम तोरे पढ़ाई बदे ठाकुर साहब के चौउवन की चाकरी माने हई सहिये कहत है काहेकि हम जानत हई की तोर पांचो भाई बस मेहनत मजूरी करके एतने कमात है की उ आपन परिवार पालल कहाँ से तोहके पढ़ा सकतेन् हम हर तरफ से सोच विचार करके यही नतीजा पर पहुचल हई की तोरे पढाई बाबू साहब के चौयवन क चाकरी सस्ता सौदा बा अब मन लगाके मेहनत से पढ़ आपन शौक पूरा कर् गाँव जवार के नाम पहिचान बनाउ हमहुके अपने मेहनत पर अभिमान होई महंगू और चुनियां की बतकही में जाने कब दोनों गाँव पहुँच गए पता ही नहीं चला महंगू और चुनियां ने साथ खाना खाया और सोने चले गए मौका मिला तो चुनिया की माई रमिया महंगु से बतकही शुरू किया बोली चुनिया के बापू आज के एतना चुनिया को कभी खुश नहीं देखा तुम्हारी बिटिया निश्चित तुम्हारा नाम गाँव जवार का नाम ऊँचा करेगी हमे वकरे ऊपर विश्वाश है काहे की जब ई गाँव में पढ़त रही तबे मुंशी जी बताये रहन की रमिया तोहार बेटी एक दिन बड़ा नाम कमाई महंगू दिनभर का थका था और सुबह उठ कर ठाकुर साहब के चौउवन की चाकरी में जाना था।

तुनक कर बोला सूत जा रमिया मुंशी जी सहिये कहतेन् हमार बिटिया सहिये कुछ अच्छा नाम गाँव जवार के करी इ हमरो विश्वाश है। अलसुबह मंहगू उठा और ठाकुर साहब यहाँ चाऊवन की चाकरी में चला गया फिर रमिया और चुनिया उठी चुनिया बहुत खुश थी उसे मन चाही मुराद मिल गयी उसे पढने का मौका मिल गया वह जल्दी जल्दी उठकर तैयार हो गयी माँ रमिया ने रोटी साक बनाकर एक पोटली में दोपहरिया के खाना दिया फिर जब चुनिया स्कूल जाने के लिये घर से निकलने वाली थी तब रमिया ने उसकी नज़र उतरते हुए कुल देवी देवता से चुनियाँ की रक्षा का वरदान मांगी और बोली अब चुनिया जो स्कूल खूब मन लगाके पढ़ भगवान तुम्हरी हर इच्छा पूरी करें और हां सुन भूलोके कौनो एसी गलती जिन करे जैसे हमार चाहे बापू के सर झुके जा बेटा भगवान तोहरे साथ हउवन और हमार और तोहरे बापू क आशीर्वाद तोहरे साथ ह।चुनिया बड़ी खुशी के साथ घर से स्कूल जाने के लिये निकली लगभग चार किलोमीटर उसे पैदल जाना था मगर उसके चेहरे पर चार किलोमीटर पैदल चलने की चिंता या परवाह लेश मात्र नही थी थी तो स्कूल जाने और पढ़ने की खुशी उत्साह और चमकती आंखों में अनेको आशा विश्वास कब वह स्कूल पहुँच गयी कैसे चार किलोमिटर पैदल पहलीबार घर से बाहर निकल कर कब स्कूल पहुँच गयी पता ही नही चला वह सीधे अपने क्लास में पहुंची और आगे की सीट पर ऐसे बैठी जैसे वह वर्षो से स्कूल जा रही है उसे कहीं से कोई नयापन नही था।धीरे क्लास में बच्चों का आना शुरू हो गया लगभग पौने दस बजे क्लास के सारे बच्चे आ गए थे तभी सुजान क्लास में घुसा और अपनी सीट पर बैठने के लिए ज्यो ही सीट के पास गया देखा कि चुनिया पहले से बैठी थी सुजान अपनी सीट भूलकर बोला अच्छा हुआ तुमने भी एड्मिसन करा लिया अच्छा हुआ अब फिर साथ साथ पड़ेंगे तब तक स्कूल की घंटी बजी प्रार्थना के लिये सभी बच्चे प्रार्थना के लिये मैदान में एकत्र हुए प्रार्थना सम्पन्न होने के बाद फिर सभी बच्चे अपने क्लास रूम में चले गए।

सभी शिक्षक आपने अपने क्लास में पढ़ाने चले गए चुनिया के क्लास में उस दिन प्राचार्य परमार्थ तिवारी जी स्वयम पहुंचे सबसे पहले परमार्थ तिवारी जी ने सभी विद्यार्थियों का परिचय प्राप्त किया क्योंकि परमार्थ तिवारी जी इसलिये क्लास में गये थे कि उस दिन उस कक्षा के शिक्षक अवकाश पर थे प्राचार्य महोदय परिचय प्राप्त कर ही रहे थे कि सजान जो चुनिया के बगल वाली सीट पर बैठा था अपना परिचय देने के बाद प्राचार्य जी के बिना किसी सवाल के बोल उठा सर ये है चुनिया हमारे ही गांव के मुसहर मंहगू की बिटिया है आज पहले दिन स्कूल आयी है प्राचार्य महोदय को सुजान का यह व्यवहार बहुत बुरा लगा उन्हंने सुजान को फटकारते हुए कहा जितना तुमसे पूछा जाए उतना ही जबाब दिया करो तुमसे किसीने चुनिया के बारे मे तो पूछा ही नही तो बताने की क्या जरूरत थी खैर आइन्दे इस बात का ध्यान रखना जितना पूछा जाए उतना ही जबाब देना सुजान यस सर कह कर बैठ गया अब प्राचार्य जी चुनिया की तरफ मुखातिब हुए चुनिया अपनी सीट से खड़ी हुई बोलना शुरू किया सर मैँ चुनिया महंगू मुसहर की बेटी और सुजान मेरे गांव के जमींदार का बेटा है और सर मुझे अपने पिता महंगू पर गर्व है उन्होंने मुझे पढ़ाने के लिए सुजान के घर चाकरी करना मंजूर किया सुजान को तो जैसे साँप सूंघ गया उसे समझ मे ही नही आ रहा था कि उसने क्यो गलती कर दी प्राचार्य परमार्थ तिवारी जी का क्लास समाप्त हुआ धीरे धीरे कर एक एक क्लास खत्म हुआ और इंटरवल हुआ सुजान को जैसे गलती की प्राइच्छित का मौका मिल गया वह बिना किसी देरी के मौका मिलते ही चुनिया के पास गया और बोला चुनिया हमसे गलती हो गयी।

हमे माफ कर दो चुनिया बोली कहे कि गलती सहिये तो बताये रहे हमारे बापू हम मुसहर तो ही है आप गांव के ठाकुर बड़े आदमी सत्यब्रत सिंह के लाडले एमा गलती माफी का कौनो बात नही हमरे तोहरे में जमीन आसमान के अंतर हम मुसहर नान जाती तू ठाकुर राजपूत तू गांव के जमींदार के बेतवा हम मुसहर जो सुबह शाम आपन खून जलावत हड्डी गलावत है तबो दू जून के रोटी नाई होई पावत हम जिनगी भर एक एक चीज खातिर तरस तरस घूट घुट मरी जाइत तोहरे आगे दुनिया के सुख सुविधा क बाजार घरे मौजूद है तोहार जउन इच्छा होई तुरते पूरा होइ जात हम गरीब लोग के इतनी इच्छा दो जून की रोटी मिल जाय वह बढ़ भाग सुजान को लगा चुनिया बहुत आहत है सो उसने अपने दोंनो हाथ से कान पकड़ कर बोला अच्छा चुनिया आज हमारे गलती के माफ कर दे फिर हम कौनो ऐसी गलती नाही करब चुनिया ने अपने अंदाज में मुस्कुराते हुए कहा छोटे ठाकुर चलो अब और ज्यादे ना दुखी करो हमे पैदल आवे में बड़ी तकलीफ भईल रहल अब तू रोज हमारे साथ स्कूल आव और साथ लेई चल तोहार सजा इतने ह हम रोज सुबह गांव की सिवान आई जाब तू हमे अपनी साइकिल से स्कूल ले आव साथ ही साथ लौटात समय गाँव के सिवान छोड़ दिह हाँ ध्यान रखिय तोहरे बापू ठाकुर सुजान सिंह क ना पता लगे कि तू हमे अपनी सायकिल से हमे बैठाके साथे ले जाल ले आवत मालूम होइ जाई त तोहार खाल खींच भूसा भर दिहे की नान जाती की छोकरी संग ठाकुर क लड़िका जात वकरे बाद पांच गव्य खियहिये सुजान बोला उनकर चिंता तू छोड़ द।हर रोज चुनिया गांव के बाहर सीवान पर आ जाती और सुजान उसे अपनी साइकिल पर बैठाकर स्कूल ले जाता और लौटते समय गांव के सिवान पर छोड़ देता जहाँ से चुनियाँ अपने घर चली जाती दोनी को स्कूल वाले अकसर दोनों को साथ स्कूल आते जाते देखते मगर कोई ठाकुर सत्यब्रत सिंह से नहीं कहता कारण यह था कि महंगू ठाकुर साहब के यहां चौउवन की चाकरी में था गांव वालों को लगता कि ठाकुर साहब की सहमति जानकारी में दोनों एक साथ आते जाते है अतः कोई भी इस बात पर खास ध्यान नही देता।

कक्षा नौ में चुनिया पूरे स्कूल में प्रथम स्थान पाकर सर्वाधिक नंबरों का कीर्तिमान बनाया वही सुजान दूसरे नंबर पर था ठाकुर साहब को रईयात और जमीदारी के कार्यो से फुरसत नही मिलती की सुजान सिंह के पठन पाठन की कोई जानकारी हासिल करें कभी कभार परमार्थ तिवारी से सुजान की शिक्षा दीक्षा की जानकारी ले लेते लगभग यही स्थिति चुनियाँ की थी उसके पिता मंहगू अंगूठा छाप थे उन्हें शिक्षा की कोई जानकारी नही थी अतः वह अपनी बिटिया से ही उसके पढाई की हाल चाल पूंछ लेता इसी प्रकार सुजान और चुनियाँ की शिक्षा चलती रही धीरे धीरे हाई स्कूल की परीक्षा नजदीक आई सुजान सिंह और चुनियाँ दोनों ने एक दूसरे को प्रतिद्वंदी मानकर अपनी तैयारी की दोनों आपस मे ही विषयगत मामलों पर आपस मे प्रश्न उत्तर समाधान खोजते हाई स्कूल की परीक्षा का परिणाम आया चुनियाँ ने फिर पूरे विद्यालय में प्रथम स्थान पर आई और सुजान दूसरे स्थान पर रहा चुनिया और सुजान विद्यालय में अपनी मेहनत से बहुत लोकप्रिय और शिक्षकों के कृपा पात्र बन गए थे ।हाई स्कूल का परिणाम आने के बाद गांव के बहुत से लोग ठाकुर सत्यब्रत सिंह को उनके होनहार बेटे की शानदार सफलता के लिये बधाई देंने वालों का ताता लगा रहता ठाकुर साहब आने वालों का मुँह मीठा करते लोग बधाई देते कहते ठाकुर साहब आपके बेटे ने गांव का नाम रोशन किया है हवेली की शान में आपके होनहार ने चार चांद लगा दिया मालिक आपकी औलाद अपने आप मे एक अभिमान और आपके खानदान को और बुलन्दियों पे ले जाने वाला लायक औलाद है भगवान ने आपको दौलत शोहरत ताकत तो दिया ही था छोटे ठाकुर ने आपके इकबाल की बुलन्दियों को आसमान की ऊंचाई दी है आप बड़े भाग्यवान है ठाकुर साहब अपनी प्रशंसा सुनकर फुले नही समाते यह सिलसिला हप्तों चलता रह महंगू ठाकुर सत्यब्रत सिंह के यहाँ बधाई देने वालों को देखता और उनकी बातें सुनता।

उसे अपनी गरीबी पर कोफ्त होता वह ईश्वर को मन ही मन कोसता उसकी बेटी पहला जगह पूरे स्कूल में बनाई है वका हम बतासा तक नही खिला सकित कोई जानत तक नही की हमरो बिटिया चुनिया गाँव के नाम आगे बढ़ाइस वोका कोई पूछता नही है मन ही मन कुढ़ता और अपनी किस्मत को कोसता तभी बगल गांव के ठाकुर विक्रम सिंह जी ठाकुर सत्यब्रत सिंह से मिलने आये ठाकुर सत्यब्रत सिंह स्वयं खड़े होकर उनका स्वागत किया और अपने बगल में बैठाया ठाकुर विक्रम सिंह ने कहा सत्यब्रत सिंह से कहा ठाकुर साहब सुजान ने अपनी मेहनत से आपका और आपके खानदान और गांव का नाम का शान बढ़ाया है अब आपको मैँ आपके दिए वचन याद दिलाना चाहता हूँ मुझे विश्वास है आपको याद अवश्य होगा सत्यब्रत सिंह ने ठाकुर विक्रम सिंह जी के शब्दों को समाप्त होने से पहले बीच मे ही टोका आरे भाई विक्रम सिंह जी मैँ ठाकुर हूँ और एक बार जबान दे दिया तो दे दिया तब सुजान पैदा होने वाला था और आपकी बेटी नम्रता पैदा होने वाली थी हम दोनों ने एक दूसरे को वचन दिया था कि अगर मेरी बेटी हुई और आपको बेटा हुआ तो या आपके यहाँ बेटी हुई मेरा बेटा हुआ तो हम दोनों एक दूसरे का विवाह कर देंगे और समाधि के रिश्ते के पवित्र डोर में बंध जाएंगे सुजान को अभी और बढ़ने पढ़ने दीजिये निश्चित हम अपना वचन निभाएंगे भाई ठाकुर आदमी है एक बार जो वचन दे दिया उसे निभाने के लिये जान भी दे सकते है ठाकुर विक्रम सिंह ने जबाब न देकर सिर्फ यही कहा हम ठाकुर अपनी आन वान जबान पर मर मिटते है विक्रम सिंह को इत्मीनान। हो गया और वे ठाकुर सत्यब्रत सिंह से विदा लेकर वापस चले गए ।धीरे धीरे स्कूल के नए सत्र का समय आ गया सुजान ने और चुनिया ने कक्षा ग्यारह में प्रवेश लिया सुजान में दुनियाँ की समझ आनी शुरू हो गई थी और चुनिया में भी दूँनिया दारी की समझ आ चुकी थी सुजान पंद्रह सोलह साल का खूबसूरत किशोर तो चुनिया बेहद खूबसूरत राजकुमारी जैसे अंदाज़ चाल ढाल अंदाज़ लगता ही नही था कि वह गांव के गरीब जाहिल अनपढ़ गंवार मुसहर महंगू की बेटी है वह किसी भी लीबाश में अप्सरा या पारी लगती थी।सुजान और चुनिया दोनों ही साथ साथ स्कूल जाते साथ साथ इंटरवल में साथ साथ खाना खाते और ढेरों बाते करते अब स्कूल में दोनों की जोड़ी मश्हूर थी कोई शिक्षक या स्वयम परमार्थ तिवारी दोनों की बढ़ती आत्मीय नजदीकियों पर ध्यान नही देते क्योकि दोनों ही स्कूल के होनहार छात्र थे दोनों ने स्कूल ने स्कूल का मान बढ़ाया था दोनों ने खेल कूद सांस्कृतिक कार्यक्रमों में स्कूल का प्रतिनिधित्व कर अनेको बार स्कूल का नाम रौशन किया था।लेकिन सुजान और चुनिया में आपसी नजदीकियां सिर्फ स्कूल की चाहरदिवारी और किताबों से निकल कर प्रेम की पराकाष्ठा हद तक पहुंच चुके थे दोनों का इश्क जुनूनीयत के हद तक पहुंच चुका था।मगर एक खास बात थी दोनों के प्यार में दोनों का प्यार पारदर्शी और वासना रहित था मगर देखने वालों को विश्वास नही होता था क्योंकि चुनिया का व्यक्तित्व इतना आकर्षक था कि बड़ो बड़ो का ईमान नियत बदलने डोलने लगता फिर सुजान जो दबंग ठाकुर परिवार का होनहार वारिस पर कोई कैसे विश्वास कर सकता था।कक्षा ग्यारह में भी दोनों ने सर्वाधिक अंक प्राप्त कर एक नया कीर्तिमन स्थापित किया और इंटरमीडिट फाइनल में बोर्ड परीक्षा की तैयारी में जुट गए दोनों के स्कूल जाने आने का क्रम वही था चुनिया गांव के सिवान पर चली जाती जहाँ से सुजान की सायकिल से स्कूल जाती लौटते समय सुजान चुनिया को गांव के सिवान पर छोड़ देता और वह अपने घर चली जाती पूरे गांव वालों को दोनों के साथ आने जाने की बात की जानकारी थी मगर ठाकुर सुजान सिंह को इसकी जानकारी नही थी।

धीरे धीरे इंटरमीडिट के फाइनल परीक्षा का समय नजदीक आ गया और प्रीपरेसन लीव होने ही वाले ही थे कि एका एक एक दिन ठाकुर विक्रम सिंह का मुंहबोला कारिंदा मुखवा बाज़ार किसी काम से गया था कि उसने चुनियाँ और ठाकुर सुजान सिंह को आत्ममियता के साथ बतियाते देखा फिर चुनिया को सुजान की साइकिल से साथ जाते देख देखा मुखबा लौट कर आया और बिना अपने घर गए वह ठाकुर विक्रम सिंह की हवेली गया ठाकुर विक्रम सिंह ने जब मुखवा को बदहवास देखा तो बढ़े आश्चर्य से बोले का बात है मुखवा ते एतना परेशान काहे है मुखवा बोला मालिक बाते कुछ ऐसी है ठाकुर विक्रम सिंह बोले जल्दी जल्दी बता बात का है मुखवा कुछ शांत हो बोला मालिक आज हम बाज़ार गए रहे हमने जो देखा आपने आँखिन पर विश्वास नही होते विक्रम सिंह गुस्से से बोले देख मुखवा बुझौल मत बुझा नाही त ते हमे जानत है अबे तोर हेकड़ी भुलाई देब ससुर के नाती तबे से बुझौवल बुझावत बाटे।मुखवा बोला ठाकुर साहब आप जबान देई की आप हमरे ऊपर नाराज ना होब हमे ना कुछ कहब ठाकुर विक्रम सिंह जी बोले बताऊ हम तोके कुछ नही करब जब मुखवा को भरोसा हो गया कि ठाकुर साहब वोके कुछ नाही बोलिहे तब उसने बताना शुरू किया साहब आज हम बाज़ार गए रहेन उहा जो हम देखिन हमे अपनी आँखिन पर भरोसा नाही भवा ठाकुर विक्रम सिंह ने जिज्ञासा से पूछा देखा का ते मुखवा बोला मालिक बतावे म जबान कटि जात बा का बताई मालिक हम बाज़ारी म देखा कि ठाकुर सत्यब्रत सिंह क बेटवा उनके यहां चाकरी करे वाले मुसहर महंगु की बिटिया से एईसन बतियावत रहेन जैसे कौनो मरद मेहरी मालिक झूठ बोलित हो तो भगवान हमे उ सजा दे जो आज तक कौनो नरक में ना हो मालिक हमे अपनी अखियन पर खुदै भरोसा नाही होत रहल मगर का करी मालिक एक त आपके नमक खाये हई उ हमे चुप नही रखेस सो भाग भागा घरे जाय से पहले हम भगे दौड़े आपके पास आयन ठाकुर विक्रम सिंह ने पूछा ए बाती क चर्चा कोई से ना कईले मुखवा बोला नही मालिक हम सीधे आपके पास आइल हई ठाकुर विक्रम सिंह ने लम्बी सांस छोड़ी और बोले ठीक है तू घर जा काल सुबह आई जाए ठाकुर साहब की गंभहिर मुद्रा देखकर कुछ घबड़ाया मगर ठाकुर साहब के घर जाने के आदेश को सुनकर जल्दी जल्दी ठाकुर साहब की पै लगी करके अपने घर चला गया ठाकुर विक्रम सिंह एकाएक चिंतित गंभहिर मुद्रा धारण कर लिया रात को किसी प्रकार खाना खाया जल्दी से विस्तर पर सोने चले गए मगर नीद उनसे कोसों दूर थी बार बार करवट कभी इधर कभी उधर बादलते ठाकुर साहब की यह दशा देख ठकुराइन राजश्री चिंतित हो गई मगर ठाकुर साहब से कुछ भी पूछने की हिम्मत नही जूठा पा रही थी किसी तरह हिम्मत जुटा कर उन्होंने ठाकुर साहब से सवाल कर ही डाला का बात है जी आप आज आप बहुत परेशान दिख रहे है आप तो विस्तर पर आते खर्राटा मारने लगते है ठाकुर विक्रम सिंह को लगा जैसे सांप सूंघ गया हो पत्नी राजश्री को क्या जबाब दे।

उनकी समझ मे नही आ रहा था सो न चाहते हुये भी कडे लहजे में बोले सो जाओ मेरा माथा मत चाटो मेरी तबियत कुछ भारी है नीद नही आ रही राजश्री ने पुनःहिम्मत जुटाते हुए कहा अजी हम आपके पिछले पच्चीस साल से देख रही हूँ आपकी तबियत खराब होती है तो सबसे पहले हमें पता लगता है आप टाल मटोल कर रहे है बताईये क्या बात है राजश्री की जिद्द देखकर ठाकुर विक्रम सिंह ने और कड़े लहजे में बोला चुप चाप सो जाओ अब तुमने कोई सवाल किया तो ठीक नही होगा राजश्री ने और कुछ पूछना उचित नही समझा सो वह मन मारकर सोने की कोशिश करने लगी। ठाकुर विक्रम और राजश्री दोनों ही एक ही विस्तर पर रात भर करवटे बादलते रहे मगर दोनों ने एक दूसरे से कोई बात नही की किसी तरह से दोनों ने रात काटी सुबह ठाकुर विक्रम सिंह जल्दी से उठकर राजश्री से कुछ जलपान बनाने की बात कह कर अपने नित्य क्रिया में व्यस्त हो गए जब तक वह पूर्ण रूप से तैयार होते तब तक मुखवा भी आ धमका बोला मालिक हम आपके द्वारा तय समय पर हाजिर है ठाकुर विक्रम सिंह जी भी तैयार ही थे बोले बैठ मुखवा आज मेरे संग नास्ता कर ले फिर चलते है ठाकुर विक्रम सिंह अपनी चौकी पर ही जलपान करने लगे कि मुखवा जमीन पर बैठ कर जलपान करने के बाद ठाकुर विक्रम सिंह ने राजश्री से कहा हम जरूरी कार्य से जा रहे है हो सकता है कि रात को देर हो जाय या आज रात रुकना ही पड़े यह कहते हुए अपनी चारपहिया गाड़ी स्वयम निकाली ठाकुर विक्रम सिंह के पास कोई कमी नही थी जब मर्जी होता जैसे चलने को चलते दोपहिया चारपहिया घोड़ा बघ्घी सभी साधन उनके पास मौजूद थे फिर उन्होंने मुखवा को पीछे बैठाया और खुद कार चलाते हुए लगभग नौ बजे सुबह ठाकुर सत्यब्रत सिंह जी के घर पहुचे सुबह सुबह ठाकुर अपनी हवेली पर बैठे थे कारिंदों की दरबार लगी हुई थी ठाकुर साहब जरूरत के हिसाब से सबको उसका काम बताते और विदा करते जिसको ठाकुर साहब से जरूरत रहती वे लोग अपनी जरूरत की फरियाद करते और पूरा होने पर बोलते दोहाई हो महाराज आपका इकबाल बुलन्द रहे बोलते और चले जाते ठाकुर विक्रम सिंह के पहुंचते ही उन्हें देख कर ठाकुर सत्यव्रत सिंह हैरत में पड़ गए ।

और कुछ देर शांत हुए उनके मन मे एक साथ कई प्रश्न खड़े हो गए उनको लगा क्या बात है कि आज इतनी सुबह ठाकुर विक्रम सिंह को आना पड़ा तभी एकाएक ठाकुर विक्रम सिंह बोले क्या बात है ठाकुर साहब आप हमारे आने से खुश नही हुए तभी ठाकुर सत्यब्रत सिंह ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा कि नही ऐसी बात नही है बात यह है कि सुबह से ही आज बेवजह लोग आगये जिनसे बहुत व्यस्तता हो गई और एकाएक खड़े होकर ठाकुर विक्रम सिंह का अभिवादन करते हुए बोले ठाकुर साहब आप बैठे और अपने घरेलू कारिंदे सुखिया से बोले कि तुम जल्दी से ठाकुर साहब के जलपान की व्यवस्था करो यह वह दौर था जब देश को आज़ाद हुए मात्र पंद्रह बीस साल ही हुआ था और जमीदारी और जमीदारों का रोब बरकरार था जमीनदार एक गांव में एक बड़ा आदमी जो अमूमन राजपूत जाती से होता था और दो चार कोस के अंतराल में दूसरा बड़ा आदमी होता था और दोनों के बीच की जनता दोनों की राईयात हुआ करती थी रियासते तो आजादी के बाद समाप्त हो गयी थी मगर रियासतों और जमीदारों के ठाट बाट जलवे में कोई कमी नही था । ठाकुर विक्रम सिंह ने कहा ठाकुर साहब हम लोग जर जलपान करके चले है किसी तकल्लुफ की कोई बात नही है लेकिन ठाकुर सत्यब्रत सिंह बोले ठाकुर साहब तकल्लुफ की बात ही नही यह हमारी संस्कृति है और परम्परा भी और आपके यहाँ की सुखिया हवेली के अंदर चला गया जलपान की व्यवस्था में तब ठाकुर विक्रम सिंह ने ठाकुर सत्यब्रत सिंह से कहा आप अपने लोंगो का कार्य जल्दी से निपटा दे तब इत्मिनान से बात करते है इतना इशारा ठाकुर सत्यव्रत के लिये बहुत था उन्हें समझते देर न लगी कि मामला गंभीर है और विक्रम सिंह जी किसी के सामने बात नही करना चाहते है ठाकुर सत्यब्रत सिंह ने तत्काक वहाँ बैठे लोंगो से कहा कि आप लोग आज जाए अब कल फिर आये आज ठाकुर साहब हमारे खास मेहमान है इनसे बात करनी है ।ठाकुर सत्यब्रत सिंह का आदेश सुनते ही वहाँ बैठे सभी लोग एका एक उठ खड़े हुए और ठाकुर सत्यब्रत सिंह का अभिवादन कर दूसरे दिन आने का वादा करके चले गए। अब वहां ठाकुर सत्यब्रत सिंह ठाकुर विक्रम सिंह और मुखवा के अलावा कोई नही था टीबी सुखिया जलपान का ट्रे लेकर वहां पहुंचा ठाकुर सत्यब्रत सिंह ने उसे जलपान का ट्रे रखकर जाने को कहा और सुखिया ने पूरी मुस्तेदी से उनके आदेश का पालन भी किया उसने ट्रे रखा और चला गया अब ठाकुर विक्रम सिंह ने मुखवा को आदेशात्मक लहजे में कहा मुखवा ते ठाकुर साहब के सच्चाई बताव मुखवा ठाकुर विक्रम सिंह के आदेश सुनते ही बोलना शुरू किया मालिक हम लोग बहुत छोट आदमी हइन जुठ बोले त हमार जबान कटीके गिर जा हम अंधा कोढ़ी हो जाई हमार कुल खानदान ख़तम हो जाय हम जियते नरक में पड़ जाय मुखवा अभी अपनी सत्यता की सफाई ही दे रहा था कि ठाकुर सत्यब्रत सिंह बोले देख मुखवा बहुत घुमाई चुके अब साफ साफ बता बात का है मुखवा बोला मालिक बड़ा हिम्मत जुताईके ई बात हम ठाकुर साहब के बतवले राहिन अब आपो हमे जबान देई की आप हम पर नाराज ना होब ठाकुर सत्यव्रत सिंह की जिज्ञासा चरम पर थी अतः बोले जल्दी से बोल बहुत लपेट चुकेस तब मुखवा बोलना शुरू किया कि मालिक बजारे गए रहेन फिर कुछ सोचने लगा तब तक सत्यब्रत सिंह का पारा चौथे आसमान पर था बोले चुप काहे है दहिया नाहर बोलते काहे ना मुखवा बोला डर लागत बा हिम्मम जबाब देत बा कैसे अपनी जुबान पर हम उ बात लाई ठाकुर विक्रम सिंह चुप चाप ठाकुर सत्यब्रत सिंह और मुखवा के बतकही बड़े ध्यान से सुन रहे थे एका एक ठाकुर सत्यब्रत सिंह खीज कर ठाकुर विक्रम सिंह से बोले ठाकुर साहब आपे एसे कहि कुछ बतावे नही त अब हमार माथा तनकत बा हम एके आपके सामने ही लतिया देब एकर होश ठिकाने आ जाई।

 तब ठाकुर विक्रम सिंह भी गुस्से से बोले ससुरा काहे तबे से लपेट रहा है काहे साफ साफ नही बताई रहा है तब फिर मुखवा बोले लाग ठाकुर साहब हम बाजारे गवा रहे उहा हम देखा महाराज की ठाकुर सुजान सिंह आपके छोटे ठाकुर आपके ही गांव के मुसहर की बिटिया चुनिया से अइसन बतियावत रहेन जैसे मरद मेहरी हमे त अपनी आँखिन पर भरोसे नाही होत रहा मालिक करी आपे लोग के नमक खाये है नामक हरामी तो करी ना साकेत इतना सुनते ही ठाकुर सत्यब्रत सिंह का पारा सातवे आसमान पर पहुंच गया और उन्होंने तुरंत सुखिया को बुलवा कर बोला देख छोटे ठाकुर सुजान सिंह कहाँ है जल्दी से भेज हमारे पास बीच मे ही ठाकुर विक्रम सिंह ने टोकते हुए कहा ठाकुर साहब सब्र5 से काम ले और उन्होंने मुखवा को एन्टी से चवन्नी निकाल कर देते हुए कहा देख अब तोर काम खतम अब ते जो किराया दिए हाइन टांगा पकड़ लिहे मुखवा बाबू साहब का आदेश पाते ही वहाँ से घसक लिया वकरे जाते ठाकुर विक्रम सिंह बोले ठाकुर साहब पहले आप महंगुआ के बोला भेजी ठाकुर सत्यब्रत सिंह बोले बोला भेजे के कौन जरूरत उ त अक्सर यहै रहत और सुखिया से बोले जो ते महंगुआ के बोलाई ले आव सुखिया दौड़े दौड़े गया और मंहगू को बोला महंगू भाई जल्दी चल ठाकुर साहब बोलाववत बाटन महंगू शंका में पूछेंन की का बात है सुखी बाबू कौनो खास बात महंगू मुसहर जाती के सबसे छोट विरादरी के रहेन बाकी कोई गोंड़ कहार चमार नाई लोहार आदि विरादरी के लोग बहुतायत संख्या में ठाकुर साहब के कारिंदे थे जाती के अनुसार ही सबको कार्य भी ठाकुर साहब द्वारा सौंपा गया था महंगू सभही कारिंदों को बाबू ही कहता था 

सुखिया बोला महंगू हमे कौनो खास बात तो पता नही देखा लौहार के ठाकुर साहब आयन है और अपने ठाकुर साहब और ठाकुर विक्रम सिंह आपस मे खुसर पुसर बतियावत रहेन हमे त कुछ ठीक नही लागत बा बाकीर करी का सकित हम लोग ठहरिन राईयत उ लोग जमींदार भगवाने हम लोगन के छोट कमजोर बनवले हवन त हम लोग सिवा करम भोग भोगेके अलावा और का करी सकित महंगू के समझत देर नाही लगी कि आज वकरे जिनकी क सबसे खराब दिन हैं।वह भगवान का नाम लेते हुये सुखिया के साथ वहाँ पहुंचा जहाँ ठाकुर विक्रम सिंह और ठाकुर सत्यब्रत सिंह खुसर फुसर कर रहे थे।

महंगू ज्यो ही सुखिया के साथ खुसर पुसर करते ठाकुर विक्रम सिंह एवं ठाकुर सत्यब्रत सिंह के पास पहुंचा ठाकुर सत्यब्रत सिंह ने लगभग जबा जाने के अंदाज़ में सुखिया से बोले सुखिया ते जो हम ये ससुरा से निपट तानी सुखिया कपसते डरते वहां से चला गया।सुखिया के जाते ही ठाकुर सत्यब्रत सिंह गुस्से से लाल आंख तरेरते हुए बोले क बे हरामजादा जोने पत्तल में खाते वोही पर छेद करते महंगू को पता नही की ठाकुर साहब क्या कह रहे है वह कंपकपाती आवाज में बोला मालिक हम त आपके राईयात है आपकी चाकरी से हमरे परिवार की रोटी चलती है आपही की कृपा से चुनियाँ कुछ पढ़ लिख लिहिस वोकर सौख पूरा भईल मालिक का गलती हो गइल दोहाई हो महाराज की सत्यब्रत सिंह पहले से ज्यादे क्रोध से बोले अरे हराम जादे ससुरा कमीना तोहन का कुकुर के दुम हैय तोहन पचन के जेतना लतियावल जाय वोतना ठीक रहबे साले ते अपनी बेटीया चुनिया के हमरे सुजान के साथे ये खातिर पढ़े भेजेस की हमरे बेटवा के अपने माया जाल में फँसाके ठाकुर खानदान के बहुरिया बन जाय कहे खड़ा है बे हरामी बैठते काहे नाही वैसे ही महंगू के पैर कांप रहे थे उसका शरीर भय से लगभग ठण्डा हो गया था बड़ी हिम्मत के साथ बैठा ज्यो ही वह बैठा ठाकुर सत्यब्रत सिंह ने लात से इतना तेज लात मारा की महंगू तिलमिलाहता जमीन पर ऐसा थिमलाया की उसके दांत टूट गए और उसके मुंह से खून गिरने लगा वह दहसत और खौप से कांपने लगा फिर किसी तरह से बैठा तो दूसरा लात ठाकुर विक्रम सिंह ने दूसरा जबरदस्त लात मारा जिससे महंगू फिर गिरा और जमीन पर कांपने लगा किसी तरह से हिम्मत जुटा कर बोला मालिक आप का कह रहे है हमका कछु नही मालूम ठाकुर सत्यब्रत सिंह दांत पिसते बोले ससुरा हम ई जानित की ते इतना शातिर हैवे की अपनी बिटिया चुनिया के हमारे खानदान क बहु बनावे खातिर खेल खेलत हैवे ससुरा हम तोरे खेल के पहिले समझ लेतीन त तोरे चुनिया क अपने हवेली में रखैल रख लेती ससुरी हमरे साथ साथ हमरे मेहमाननवाजी का लज़ीज़ बनावत महंगुआ कंपकपाती आवाज में बोला मालिक का कहत हइन आपकी बेटी जईसन बा चुनिया कुछ त रहम करी खिसियाए सत्यब्रत सिंह ने महंगू को पास पड़ी लाठी उठाकर पीटना शुरू कर दिया महंगू चिल्लाता जा रहा था सत्यब्रत की लाठिया पड़ती जा रही थी

लाठी टूटने के कगार पर आ गयी ठाकुर सत्यब्रत सिंह महंगू पर लाठी भांजते हांफने लगे तब ठाकुर बिक्रम सिंह ने बीच मे रोकते हुए कहा ठाकुर साहब हो सकता है महंगू सही बोल रहा हो इसे सच्चाई की जानकारी ना हो।आप महंगुआ को सुखिया के साथ उसके घर भेज दीजिये ठाकुर सत्यब्रत सिंह ने बहुत तेज आवाज लगाई सुखिया सुखिया भागे भागे आया बोला का बात है मालिक ठाकुर सत्यव्रत सिंह बोले सुन ध्यान से महंगुआ का एके घरे पहुंचा जो केहू पूछे महंगुआ का ई हाल कैसे भईल तो बता दे कि एके अपने कर्मन के दंड भोग है सुखिया जल्दी से महंगू के दुनो काखे में हाथ लगाई के उठाई के धीरे धीरे महंगू की घर की तरफ चल पड़ा महंगू और सुखिया के जाने के बाद ठाकुर विक्रम सिंह ने ठाकुर सत्यब्रत सिंह को सलाह दिया कि आप ठाकुर सुजान सिंह को बुलाये सत्यब्रत सिंह ने तुरंत आवाज लगाई छोटे ठाकुर सुजान तुरंत सुजान आज्ञाकारी पुत्र की तरह हाजिर हो गया और बोला क्या आदेश है पिता जी ठाकुर सत्यब्रत ने ठाकुर विक्रम सिंह जी की तरफ इशारा करते हुए बोले ये ठाकुर विक्रम सिंह जी है पड़ोस के जमीदार है ठाकुर विक्रम सिंह जी बोले बैठो बेटा सुजान सुजान सामने पड़े कुर्सी पर बैठ गया सुजान के बैठते ही विक्रम सिंह जी बोले ठाकुर सत्यब्रत जी आप बड़े सौभाग्यशाली है जो आपको ईश्वर ने इतना लायक बेटा दिया फिर सुजान की तरफ मुखातिब होते बोले कि बेटा पढ़ाई लिखाई में तुमने ठाकुरो की नाक ऊंची कर दी वरना हमारे बच्चे जमीदारी रियासत की समझदारी राजनीति के दक्षता पर ही जोर मारते है तुम तो ठाकुरों की परम्परा से अलग अपना साम्राज्य स्थापित करने में सक्षम सबल हो हम ठाकुरो को तुम पर नाज़ है फिर ठाकुर विक्रम सिंह ने आगे बोलना शुरू किया  सुना है इंटरमीडिट का इम्तेहान जल्दी ही शुरू होने वाले है आपने तो इम्तेहान की बहुत अच्छी तैयारियां की होंगी अच्छा ई बताओ ठाकुर सुजान सिंह इस गांव से आपही स्कूल जाते हो कि औरो कोई औरो जात है पढ़े सुजान तमाम राजनीति शातिर चालो से अनजान बोला हा जाती है ना महंगू मुसहर की बिटिया चुनिया रोज गांव सिवान के बाहर हमरे साइकिल से जाती आती है ठाकुर सुजान सिंह के द्वारा सत्य सुनते ही ठाकुर विक्रम सिंह और ठाकुर सत्यब्रत सिंह को जैसे सांप सूंघ गया दोनों स्तब्ध रह गए दोनों कुछ बोलते उससे पहले सुजान ने ही चुप्प तोड़ते हुए कहा और हा इस बात की जानकारी चुनिया के बापू को भी नही है कि चुनिया मेरे साथ ही स्कूल जाती है ।ठाकुर विक्रम सिंह और सत्यब्रत सिंह ने नौजवान सुजान सिंह से और बात करना उचित नही समझा और सीधे उसे आदेश दिया कि अब तुम जा सकते हो।ठाकुर सुजान सिंह के जाने के बाद ठाकुर विक्रम सिंह और ठाकुर सत्यब्रत सिंह ने आपस मे काफी देर तक इस विषय पर मंत्रणा की और निष्कर्ष पर पहुंचे की ठाकुर सुजान सिंह पर कड़ी नजर रखी जाए और इंटरमीडिट परीक्षा पास करने के बाद उन्हें दिल्ली पड़ने भेज दिया जाय।इधर सुखिया महंगू को टांगे किसी तरह से महंगू के घर पहुंचा महंगू के घर पहुंचते ही उसकी दशा देख उसके घर। रोना पीटना पड़ गया महंगू की लुगाई ने सुखिया से पूछा इनकार ई दशा कैसे भईल सुखिया की आंखों से अश्रु धारा फुट पड़ी वह कुछ न बोल सका सिर्फ गरीबी बड़े आदमींन के लाते लतियावल गई है चुनिया की माई और कुछो नाही भईल बा इतना कह कर फिर बोला डॉक्टर वैद्य वदे दिखावे खातिर तोहार हमार औकात त बा नाही देशी खर बिरवा दवाई कर और हल्दी दूध गरम कई के पियाओ शायद ई बच जाय हम गरीब त कीड़ा मकोड़ा होत है बच गए तो भगवान की कृपा नाही बचे त अपनी करम भागी के मेहरबानी तब तक पड़ोस में गयी चुनिया अपने घर हल्ला रोना धोना सुनी के आयी चुनिया के आते ही सुखिया वहाँ से चला गया चुनिया। ने रोते हुए बापू महंगू से पूछा तोहार ई गति के कईलस महंगू ने कांपते स्वर में बताया कि ठाकुर साहब कहत रहन की हम तोहे स्कूल ये बदे भेजे रहे कि तू ठाकुर सुजान के अपने मोह जाल में फ़साई क ठकुराइन बन जा चुनिया को माजरा समझते देर न लगी उसकी आवाज़ रूध गयी वह मासूम बोल भी क्या सकती थी।घर मे किसी बिपत्ति का सन्नाटा छा गया ।चुनिया की माई ने बोलना शुरू किया का उहाँ ठाकुर विक्रम सिंह आवा रहा महंगू ने सहमति से सर हिला दिया ।चुनिया की माई को माज़रा समझते देर न लगी उसे पता था कि चुनिया ठाकुर विक्रम सिंह की ही नाजायज औलाद है चुनिया की माई विक्रम सिंह के राईयत की बेटी थी जब रमिया जवान हुई और उसके बापू चोकर वोकरे वियाहे के खातिर लड़िका देखत रहें तबे विक्रम सिंह की नज़र रमिया पर पड़ी उन्होंने अपने कारिंदे समरथ से रमिया के बारे मे सारी जानकारी प्राप्त की समरथ ने बताया विक्रम सिंह को बताया था मालिक जिस रमिया के लिए आप इतना परेशान है और जो आपके आँखिन के किरकिरी है उ त आपके के खदुका रईयात जोकरवा की बेटी है।विक्रम सिंह का आतंक और वहसी पन पूरे इलाके में मशहूर था उसके आतंक से जन जन दहसत और खौफ में जीता सभी को यह खौफ सताता की पता नही कब क्या कर दे वहसी अभिमानी यह ठाकुर सभी प्रतिदिन हर प्रातः भगवान से प्रार्थना करते कि हे ईश्वर विक्रम सिंह जैसे दरिंदे का दर्शन न हो भले मौत क्यो न आ जाये यह ख़ौफ़ और दहसत का आलम था ठाकुर विक्रम सिंह का मगर कोई कुछ भी करने में असमर्थ था किसी की हिम्मत नही थी कि ठाकुर विक्रम सिंह के सामने खड़ा होके हिम्मत जुटा ले सभी कहते लोग जूठे ही कहत की आपन देश मुगलन अउर अंग्रेजन क गुलाम है आपन देश त आपने लोगन की गद्दारी अभिमान अत्याचार क गुलाम बा गांधी बाबा झूठे ब्रत उपवास करिके देश क आजाद करायन ई ससुरा राक्षस तबो रहेन आबो हाइन।विक्रम सिंह जब जो पसन्द आता उसे उठवा लेता जबसे विक्रम की निगाह रमिया पर पड़ी थी तब से उसके रात की नीद हराम हो गयी थी उसे दिन रात रमिया की अल्लड़ जवानी जहाँ तहा नज़र आती एका एक ठाकुर विक्रम सिंह ने अपने खास कारिंदे समरथ को बुलाया और कहा जो ते जोकरा के बुलाई लाव समरथ भागा भागा गया और उसने जोकर को ठाकुर विक्रम सिंह का फरमान सुना दिया जोकरा बहुत घबड़ाये

अंदाज़ में बोला का बात है समरथ भाई कौन गलती हमसे हुई गइल ह जकीर खातिर ठाकुर साहब नाराज़ हुई गइल हउअन समरथ खतरनाक मुस्की मारत बोलीस नाही जोकरा ठाकुर साहब बड़ा खुश हाइन तोहपर तोहे बख्शिश देवे खातिर बुल्लाये है जोकरा बोलेश अरे भाई समरथ हम त अइसन कुछ करे नाहिन त काहे क बकसीस पर त समरथ कहत हुया त चलत हाई देखी भगवान कौन आफत विपति ठाकुर साहब के कहर के रूप में बकसीस वकसत हाइन ।समरथ और जोकर दोनों ठाकुर विक्रम सिंह की हवेली की तरफ चल दिहिन कुछ ही देर में दोनों ठाकुर विक्रम सिंह की हवेली की पहुंच गए जहां ठाकुर साहब बड़ी बेसबरी से दोनों का इंतजार कर रहे थे।दोनों को देखते ही ठाकुर विक्रम सिंह बोले आवो जोकरा तोहे देखे बहुत दिन होई गवा रहा सो बोलाई लिहा जोकरा मन ही मन सोचे लगा कि हमारे चेहरा में कौन ऐईसन बाती बा कि ससुरा के हमार चेहरा देखे खातिर बोलाएस हो न हो ई हरामजादा कुछ शातिर हरमीपाना करी जोकरा अभी मन ही मन अंदाज़ लगावत रहा तबे ठाकुर विक्रम सिंह क आवाज़ कड़कती गूंजी जैसे अच्छे वातावरण में किसी राक्षस की ख़तरनाक आवाज़ गूंजे का सोच रहा हैं जोकरा आज त तोहे खुश होएके चाही की तोहे ठाकुर विक्रम सिंह इज़्ज़त देवे खातिर बुल्लाये है जोकरा बड़ी हिम्मम जुताईके बोलीस मालिक क इक़बाल बनल रहे मालिक क कृपा भगवान के रहम बोले मालिक हम पर आपके कौन रहम करईया हाइन हुज़ूर हमरे त भाग खुल गया विक्रम सिंह जहरीली मुस्कान छोड़ते हुए बोला तो सुन जोकरा तोरी रमिया हमरी रातिन क नीद हराम करें है जागत सुतत्त उठत रमिया रमिया नज़र आवति हैं जब तक रमिया कुछ दिन हमरी हवेली 

विस्तर पर कुछ दिन न आई हम परेशान रहब यह कहते हुए विक्रम सिंह अपनी दोनाली बंदूख की नली साफ करता रहा जोकरा का बोले वोकर त हलक सुख गया कंपकपाती आवाज़ में बोला मालिक रमिया क त वियाहे खातिर लड़िका खोजत हाइन विरादरी में जब ई बात पता चली कौन वेसे वियाहे खातिर राजी होई ठाकुर विक्रम सिंह ने शेर की दहाड़ मारते अपनी बंदूख की नली जोकरा की तरफ खुमाई के बोला अरे ससुरा जब उ हमारे विस्तर पर हम विस्तर होई तब वोकरे खातिर हमरे खदुकन के वोसे वियाहे खातिर लाइन लग जाई इतना सुनते ही जोकरा के कांपने लगा और उसकी धोती भय से खराब हो गयी मरता क्या न करता हिम्मम जुताई के बोला मालिक आपके जबान हमारी जान फिर ठाकुर विक्रम सिंह

 ने समरथ से कहा सुन ते जोकरा क एक लक्स साबुन बढ़िया लूगा दे ताकि रमिया अच्छे से नाहा धो के पाउडर स्नो लगाईके तनिक निक बनिके आवे ऐसे मुसखइना ऐस न चली आवे ।समरथ मालिक के आदेश पावा तुरंत दौड़ा दौड़ा हाट गवा और जेतना मालिक कहे रहेन वोसे ज्यादा शौख श्रृंगार के समान खरीद लावा और सीधे चोकरा के घर दे आवा और चोकर से बोला मालिक कहे हैं बहुत देर न होखे के चाही किरिन डूबते रमिया बन ठनके मालिक के हरम में हाजिर हो जाई।चोकर ने सारी दास्तान पहले ही बेटी रमिया को बता दी थी रमिया सिर्फ इतना ही बोल सकी केतनो आजादी होई जाय बाकीर हम लोग आदमी के वेष में जानवारे रहब चिंता न कर बापू हम जरुज जाब चोकर अपनी मजबूरी पर कभी सर पिटता कभी इंसान होने को कोसता कभी भगवान से कहता अरे कहि तोहरो ताकत बा त आज आसमान फट काहे ना जात बा एक बाप के   एतना कमजोर कईसे बना सकत की अपनी इज़्ज़त बेटी रोटी के नाही बचा सकत अगर ऐसे तोहार मर्जी त ऐसे बाप के मारी काहे ना देत तोहरी दुनियाँ में लावारिस तोहर माजाक उदावत तू हूँ धन्य बाढ़ भगवान चोकर अपनी बदनसीबी पर तरस खा रहा था चीख चिल्ला रहा था उसी बीच रमिया तैयार होकर माँ दुर्गा की तस्वीर के सामने खड़ी होकर बोली जा रही हूँ माँ मेरा गरीब बेबस लाचार बाप अपनी बेबसी पर लाचारी पर तड़फड़ा रहा है उसकी आँखों से आंसू नही उसके कलेजे के टुकड़े के खून के बूंद है क्या तेरा यही न्याय है अगर आज भी तू मात्र तस्बीरों और पत्थर की मूर्ति में ही रही तो धरती फट जाएगी आसमान फट जाएगा और दुनियाँ का अस्तित्व फिर जानवरों से ही होगा मैं जा रही हूँ माँ तू मुझे आशीर्वाद दे सकती है तो दे नही दे सकती तब भी मैं तुझे तेरी शक्ति को प्रणाम कर आज स्वयं लूटने कसाई के हाथों जा रही हूँ याद रखना आज का ये दिन तेरी दुनियाँ में एक नई दुनियाँ का आरंभ होगा।

रमिया तेज कदमो से निकली और चली गयी जआते समय उसने अपने बापू की लाचारी का विलाप सुना मगर क्या कर सकती थी वह पल भर रुकी और चली गयी करीब बीस पच्चीस मिनट में वह ठाकुर विक्रम सिंह की उस हवेली पहुंच गया जहाँ वह प्रति दिन अपनी इच्छा के अनुसार अपनी राईयात की कमजोर जनता की बेटियों की इज़्ज़त अपने पैरों तले रौंदता वहाँ पहुंचते ही रमिया ने वहाँ पहले से मौजूद समरथ से पूछा कि कहाँ जाना है समरथ बिना विलम्ब किये हुये रमिया को ठाकुर के उस कमरे में छोड़ आया जहाँ ठाकुर विक्रम सिंह अकसर अपनी ऐय्यासिओं को अंजाम देता।रमिया पलँग पर बैठ कर इंतजार करने लगी

लगभग डेढ घंटे बाद ठाकुर विक्रम सिंह आया और नशे में धुत सीधे उस कमरे में दाखिल हुआ जहाँ रमिया उसका इंतज़ार कर रही थी।जाते ही वह रमिया पर ऐसा टूट पड़ा जैसे कोई भूखा शेरे किसी हिरनी के कमजोर बच्चे की नरम नरम बोटी नोच नोच खा कर अभिमान मद में चूर स्वयं पर गर्व कर रहा हो पूरी रात वह रमिया के जिस्म को नोचता रहा सुबह पांच बजे वह थक कर चूर हुआ और सो गया रमिया भी थक कर चूर सो गई।दिन के लगभग बारह बजे ठाकुर विक्रम सिंह उठा और पहले से जगी रमिया ने कहा मालिक हम घरे जाई तुरंत ठाकुर विक्रम सिंह बोला का बात रमिया ईश्वर कसम से आज तक तोहरे जईसन नरम नज़ाकत जवानी का नशा आज तक नाही पाइले रहिंन आज कुछ लगा कि औरत का चीज होत है सुन जब तक हमार जियरा ना जुडाय जाई तब तक ते यह रहबे जब हम कहब तब जाबे तोरे खान पान क मस्त इंतज़ाम हमार खास समर्थवा करी कलिया कलेजी गोश्त सब तोहे इहे मिली और तुरंत समरथ को बोला कर ठाकुर विक्रम सिंह ने कहा एके खाय पी के व्यवस्था शानदार करीहे ताकी गर्मी कायम रहे।

ससमरथ बोला मालिक आपक इक़बाल बुलंद रहे हमरो कुछ मेहनताना बख्सिस होत की नाही ठाकुर विक्रम सिंह जी बोले विल्कुल होत है ते उहाँ हवेली पर आईके मिले और हाँ एकर खान पान क व्यवस्था चौचक होएके चाहे।अब प्रतिदिन समरथ रमिया के खाने पीने की खास वयस्था करता और रोज शामको ठाकुर विक्रम सिंह आता पूरी रात रमिया को रौंदता और चला जाता यही क्रम लगभग एक माह तक चलता रहा एकमाह बीतने के बाद एका एक ठाकुर विक्रम सिंह ने रमिया से कहा आज ते अपने घर जो रमिया को लगा जैसे उसे गंदगी और नर्क से मुक्ति मिल गयी और वह सीधे अपने घर को चली गयी।उधर चोकर बिटिया रमिया की राह देखते देखते थक कर भगवान भरोसे छोड़ दिया चोकर एकाएक रमिया को देखा तो लाज के मारे मुँह फेर लिया फिर रमिया ने दुर्गा रणचण्डी की तरह बोलना शुरू किया बापू काहे लजात बाट लाजाये के त वोके चाही जे हमे तोहे पैदा कईलस भगवान जब वोके लाज नाही आवत त हमे तोहे काहे काज उ ठाकुर के भी उहे पैदा कईले बा हमनो के उहे पैदा कईले बा सो लजा मत वोही पर छोड़ द देख का करेला चोकरा के मन नाही मानत वोके अपनी बेबसी लाचारी पर लाज आवत।धीरे धीरे रमिया की माई चोकर और रमिया पूरे प्रकरण को हादसा समझ कर भुलाने लगे करीब एक महीने बीत गए और धीरे धीरे रमियब की माई उसके बापू और उसकी खुद की स्थिति में सामान्यता आने लगी तभी एक दिन रमिया को उल्टी और चक्कर आने लगा रमिया की माई को समझते देर न लगी कि रमिया माँ बनने वाली है

उसने ये बात अपने पति चोकर से बताई चोकर का कर सकते थे वो हांफते कांपते ठाकुर विक्रम सिंह के पास बोला मालिक क इकबाल बुलंद रहे ठाकुर विक्रम सिंह बोले का बे चोकरा सुबह सुबह आपन मनहूस सकल ले के का हमरे पास आइल हवे देख जल्दी बताऊ हमरे पास तोर मनहूस सकल और बेमतलब बात सुने क समय नाही बा चोकर बोला मालिक का करी भगवान हमार सकल अइसने बनावले हउवें और रहल बात बेकार बातके त हम कैसे बताई हमरे समझ मे नाही आवत मगर बतावे के पडेबे करी और बोला महाराज आप दूसरे औलाद के बाप बने वाला हा

हईन ठाकुर विक्रम सिंह को समझते देर नही लगी तुरंत वो चोकर को लेकर किनारे अकेले में ले गए तब ठाकुर के हुज़ूर में बैठे सारे खदुको को लगा कि आज कौन सी खास बात है चोकरा में जउन ठाकुर साहब ऐपर एतना मेहरबान है ठाकुर विक्रम सिंह ने एकांत में ले जाकर चोकरा से पूछा का बे ऊहा अनाप सनाप बके जाई रहा है हमरे यहां औलाद आये वाली होय और साले ते बतईबे वोके बाद दीवाल में तंगी कोड़े को उतारा और दनादन चोकरा पर वर्षाने लगे चोकरा कभी हंसता कभी रोता मगर यह नही कहता मालिक अब मत मारो।अंत मे ठाकुर विक्रम सिंह खुद थक गए और उन्होंने हंटर ज्यो ही फेका अंदर आते समरथ ने हंटर हाथ मे पकड़ते बोला मालिक बात बात पर मारे के का मतलब हमे बुलाई लिये होत हुज़ूर ई त ई बतावे आइल बा कि रमिया माँ बने वाली ह मगर आप कुछ सुने खातिर तैयारे नाही बाट समरथ की बात सुन ठाकुर विक्रम सिंह की हालत खास्ता हो गई उन्होने आनन फानन चोकरा को उसके घर समरथ से भेजवाया जब चोकरा अपने घर पहुंचा तब उसकी लुगाई सुगियां रोते चिल्लाते छाती पीटने लगी और हर बार यही कहती है भगवान हम जईसन कीड़ा मकोरण के काहे आदमी बनओल काहे नाही एक बार मारी देत हव काहे तिल तिल मारत हौव् समरथ ने सुगियां को ढाढस बंधाते बोला सुगियां चोकरा क संभाल भगवान जउन करीहे अच्छा करीहे।

समरथ लौटकर जब ठाकुर विक्रम सिंह की हवेली गया तब ठाकुर साहब गमगीन हो जैसे उसीके लौटने की राह देख रहे हो समरथ के पहुंचते ही माथे पर बल देते हुए ठाकुर विक्रम सिंह बोले समरथ कौनो रास्ता बता ससुरा ई हालात से निकरे खातिर तोर बाप दादा हमरे पुरुखन के बड़ी ईमानदारी से सेवा करिन जब कउनो परेशानी आवत वोके खातिर कुछो करत रहेन अब ते ही कौनो रास्ता निकाल समरथ समझ गया कि आज ऊंट पहाड़ के नीचे आई गाया है बोला मालिक आपकी त सैकड़ो औलाद इधर उधर घूम रहा है एमे इतना चिंता के कौन बात बा ठाकुर विक्रम सिंह बोले साले ईहां हम परेशान हाईन ते बुझूअल बुझावत है तोरे समझ मे नाही आवत हैं का की हम तोके समझावे खातिर जानवर बनी जाई समरथ ने देखा लोहा गरम है सो उसने सही चोट करना उचित समझा उसने कहा हुज़ूर ई समस्या का समाधान करिदेब आप तनिक कुबेर बन जा मालिक हमरे पास कुल जमा घर छोड़के बिता भर जमीन नाही मालिक क नज़र हो जाय त हमहू कास्तकार होई जब ठाकुर विक्रम सिंह ने तुरंत कहा देख समरथ बहुत कुछ त नाही तबो गोयड़े तोके दू विगहा खेत देत हई जो ते आज से कास्तकार होई गईले इतना सुनते ही समरथ सीना नथुना फुलाते हुए बोला मालिक बच्चा नौ महीना पर पैदा होत रमिया एक महीना से ठहरी बा कबो कबो बच्चा सातो आठ महीना पर होत काहे ना रमिया क विहाह करा दिया जाय जहां जाई बाप और बच्चा उहाँके आपके नाम न आई और बवाल न होई रमिया क इज़्ज़त भी बच जाई जे से वियाह होई वो ससुर क कैसे मालूम होई की रमिया ठहरी बा और उ मेहरारू बच्चा दुनो एके साथे पाई जाय ठाकुर विक्रम सिंह समरथ की बात सुनकर उछल गए बोले साले समर्थवा तोरे पास इतनी शातिर खोपड़ी कहाँ से है बे समरथ बिहसा बोला ई सब आपे लोगन की सोहबत क असर है ठाकुर विक्रम सिंह ने सवाल दागा अबे समरथ ऐतना जल्दी रमिया की बिरादरी में लड़िका कहा से मिली समरथ बोला मालिक ठाकुर सत्यव्रत सिंह की गावे महंगुआ मुसहर बिरादरी में बांका जवान है वोके वकरे माई बाबू के बोलाई लियावत हईन डोलाकड़वा वियाह कराई दहल जाई डोला कड़वा वियाह एक प्रथा है जिसमे लड़के वाले लड़की के घर जाते है और विवाह करके वधु को साथ लाते है।ठाकुर विक्रम सिंह ने तुरंत समरथ को आदेश दिया कि वह शीघ्र जाए पंडित खेमकरन को बुला लाए समरथ बोला जी हुज़ूर अभी जाइत हाईन और पंडित खेमकरन क बोलाके लाइत हई समरथ तुरंत पंडित खेमकरन के यहाँ गया और ठाकुर विक्रम सिंह का फरमान सुना दिया बोला पंडित जी तनिको देर मत करी तुरते चली पंडित खेमकरन ने भी बात विवाद उचित नही समझा तुरंत पत्रा पोथी लेकर ठाकुर साहब की हवेली को चल दिये कुछ देर में ही समरथ और पंडित खेमकरन ठाकुर विक्रम सिंह की हवेकी पहुंच गए पंडित जी को देखते ही ठाकुर विक्रम सिंह बोले का पंडित सब ठीक बा न ना दंड ना प्रणाम ना पंडित जी का सम्मान पंडित जी समझ गए कि ठाकुर विक्रम सिंह का अहंकार सर चढ़ कर बोल रहा है अब बहुत दिन नही जब इसका समूल नाश हो चुका होगा पंडित जी मन ही मन अभी इस कल्पना में डूबे ही थे कि कड़कती आवाज में ठाकुर विक्रम सिंह ने

आदेशात्मक लहजे में कहा पंडित जी वियाहे क साइत बताव जउन दस दिन के अंदर हो और ई जिन पूछे कि काहे खातिर पूछत बानी जल्दी बतावो दक्षिणा ल जा पंडित खेमकरन बिना बिलम्ब पत्रा से वियाहे क शाइत निकालके बराई दिहेन बोलिन मालिक बडा शुभ लगन मुहूर्त बा आज से नौवा दिने दिन मंगलवार भगवान रामके वियाह यही तिथि दिन में भईल रहे ठाकुर विक्रम सिंह ने पंडित खेमकरन को दक्षिणा देने के लिये दस रुपाया अपनी अचकन के पाकिट से निकाला और ज्यो ही देने लगे पंडित खेमकरन ने बड़ी विनम्रता से कहा मालिक आपही का दिया खा रहे है आज आपसे दक्षिणा क्या लेना पंडित खेमकर वहाँ से चल दिये तब ठाकुर विक्रम सिंह ने समरथ से कहा अब ते जो और मुहूर्त पर लड़िका और वकरे घरवालन क बुलाई लाव समरथ बोला जी हुज़ूर फिर ठाकुर विक्रम सिंह ने एक हज़ार रुयाया समरथ को देते हुए बोले सुन समरथ ते लड़िकी वालन के ई रुपया दे दिहे समरऔर सुन समर्थवा सीधे महंगुआ के घर जिन चाला जाए पहिले ठाकुर सत्यब्रत की हवेली जाए और उनसें बताये की तोहे ठाकुर विक्रम सिंह भेजे है कुछ देर बतकही के बाद बताये की यही लागे ते चाहत है कि महंगुआ के वियाह रमिय से होय जाय बताये ऐसे की ठाकुर सत्यब्रत संमझ जाय कि इमा उनहूँ के मर्जी है बाकी ठाकुर साहब खुदेही समझदार है उनके समझत देरी ना लागी और सुन अब देर जिन कर जल्दी से जो समरथ बोला मालिक क इकबाल बुलन्द रहे आपकी मर्जी ख़ुदा की मर्जी आपका काआदेश सर आंखों पर मगर एक बात है मालिक ई वखत सूरज कपारे पर है लू चलत बा बड़ी गर्मी है अगर आपके हुकुम होत त मनुहार काल फ़ज़ीरे निकलतें बड़ी गर्मी है सूरज आग उंगली रहा है ठाकुर विक्रम सिंह दहाड़ते हुये बोले मालिक के बच्चे हम तोके अबही जाए खातिर कहत हाईन तू ससुर क नाती काली क दिन धरावत है ज्यादा से ज्यादा का होई मरिजाब और का होई समर्थवान मन ही मन गरियावत सोचे लागा साला केतना कमीना बा ससुरा जलिम विक्रम एके अंदर जनिक भी इंसानियत नाही बा अभी समर्थवा मन ही मन सोच ही रहा था कि ठाकुर विक्रम सिंह फिर गुराते हुये बोले का सोच रहा है बे समरथ बोला सोच ई रहे थे मालिक अबे जाय म का हर्जा बा अगर गए त मालिक क नमक के हक अदा करके एसे बढ़िया मौका का मिली अबे जाइत है मालिक ठाकुर विक्रम सिंह ने अपने रोबिले अंदाज में कहा जल्दी जो किरिन डुबान तक पहुंच जाबे रात भर रुक के वियाहे के दिन बार ठीक कारीक़े आए मरता क्या न करता समरथ तुरंत मनुहार के लिये निकल पड़ा पैदल ही उसे जाना था भीषण गर्मी का महीना जून और धरती आकाश दोनों आग उगल रही थी भयंकर लू चल रही थी बीना किसी परवाह के समरथ मने मन ठाकुर विक्रम सिंह को गरियाता चला जा रहा था उसको मालूम था कि लू और गर्मी से त शायद बच जाए मगर ठाकुर विक्रम सिंह की कहर से वके के बचावत।यही सोचता विचरता मन ही मन विक्रम सिंह को गरियाता सोचता कि एक जल्लाद विक्रम सिंह के बाद दूसरा जल्लाद सत्यब्रत सिंह के पाले जाई रहा है भगवान से मन ही मन खैरियत के साथ लौटने की गुहार भी करता लगभग बारह बजे दिन क चला समरथ मनुहार ठाकुर सत्यब्रत सिंह की हवेली नौ बजे राती का पहुंचा सामरथ को इतनी रात देख सत्यब्रत सिंह को जरा सा भी आश्चर्य नही हुआ उन्हें अच्छी तरह मालूम था कि यह ठाकुर विक्रम सिंह का राजदार है किसी खास मकशद से ही आया होगा ठाकुर सत्यब्रत ने समरथ को बैठाया और हवेली के कारिंदों से उसके खाने पीने और ठहरने की व्यवस्था का आदेश देने के बाद बोले अब बताऊँ समरथ इतनी गर्मी के मौसम में कैसे आये समरथ ने कहा मालिक हमरे मालिक के आदेश रहा कि आपके हाल चाल मिले बहुत दिन होई गइल रहे सोई हमे ठाकुर साहब भेज दिहेन ठाकुर सत्यब्रत सिंह संमझ गए बात कोई गंभीर है उन्होंने बहुत घुमा फिराके समरथ से राज उगलवाने की कोशिश की मगर वह था कि कुछ बताने को तैयार नही था अंत मे हार के ठाकुर सत्यब्रत ने कहा सुन सामरथ हमके देखत है हमारे रियासत के लांघत आये होब त जानी गईले होबे की सब कुशल मंगल बा विहने जाईके

ठाकुर विक्रम सिंह के बताए अब जात  हई सोवे तुमहु खाना वाना दारू सारू पिके सोई जाए जब ठाकुर सत्यब्रत सिंह उठकर जाने लगे तब समर्थवा बोला मालिक एक बात हम आपन कहत चाहित हई ठाकुर सत्यब्रत सिंह बोले बोल जल्दी का तोर खास बात है सामरथ बोला मालिक हम महंगुआ के विहाहे खातिर रिश्ता लाईल हईं ठाकुर   सत्यब्रत सिंह तुरंत पुनः बैठ गए क्योकि उन्हें पूरे माजरे को समझते देर नही लगी समझ गए कि इसी खास काम के लिये ठाकुर विक्रम सिंह ने इसे भेजा है उन्होंने समरथ से कहा कि ठिक है अभी हम अभी महंगुआ और बकरे माई मिनकी बापू मुनहर के बोलवाईत हई तुरन्त हवेली में आवाज लगाई और सुखिया बाहर निकला और बोला हुकुम मालिक ठाकुर सत्यब्रत सिंह ने सुखिया को आदेशात्मक लहजे में बोला सुन सुखिया ते ऐही वखत महंगुआ बकरे माई मिनकी और बापू मुनहर के बोलाइ ले आव सुखिया ठाकुर सत्यब्रत सिंह का आदेश पाते ही दौड़ा दौड़ा महंगुआ के घर पहुंचा और बोला महंगू अपने माई बापू के साथे अबे चल ठाकुर साहब के आदेश ह मुनहर मिनकी एक साथ बोले का बात आज एतना रातीके का पूरा हमरे परिवार के फांसी चढाईये का सुखिया बोला हम नाही जानित हम त आदेश क पालन करित है अब झंझट छोड़ और चल जल्दी झट मिनकी मुनहर और महंगू सुखिया के साथ चल दिये थोड़ी देर में ही सुखिया मिनकी मुनहर

महंगू के साथ ठाकुर सत्यब्रत सिंह के सामने हाज़िर थे ठाकुर सत्यब्रत ने बड़ी इज़्ज़त के साथ मुनहर मिनकी और महंगू को बैठाया इतनी इज़्ज़त वो भी रात के बारह बजे एक उदंड जमींदार द्वारा किसी खास बात का इशारा महंगुआ के संमझ में आ गया

माँ बाप और बेटा कांपते हुये किसी प्रकार बैठे उनके बैठते ही सुखिया हवेली के अंदर जाकर अंग्रेजी दारुऔर चीखना लेकर आया ठाकुर सत्यब्रत सिंह बोले मुनहर मिनकी आज छक कर दारू पी महंगुआ से बोले देख महंगुआ ते अपने माई बापू के सामने नौटंकी जिन करे मुनहर मिनकी बोले मालिक आधी रात के खाई पी के सोवत रहे तबे सुखिया आपके आदेश लेकर पहुंचा हम लोग चला आएं ए वखत दारू पीएके कौन मतलब ठाकुर सत्यब्रत बोले हम चाहित है कि तू सब आज की राती हमार खास मेहमान है ए लिये पिय इसके बाद मुनहर मिनकी महंगू के पास कोई जबाब नही था अंग्रेजी दारू और काजू देखकर मन पहले से लपलपा रहा था फिर माँ बेटे बाप ने एक साथ पीना शुरू किया जब ठाकुर सत्यब्रत को यकीन हो गया कि नशा चढ़ना शुरू हो गया है तो बोलना शुरू किया सुन मुनहर मिनकी ठाकुर विक्रम सिंह जी की रियाया रमिया से तोरे लड़िका महंगुआ के वियाह हम तय कई दिहले हई अबे पंडित जी आवत होइए तब तक पंडित पर्वतानंद जी पर्वताकार काया लेकर हाज़िर हो गए आदर के साथ बैठाते हुये ठाकुर सत्यब्रत सिंह ने कहा पण्डित जी आप एक वियाहे क शुभ शीघ्र लग्न निकाले जैसे जल्दी से जल्दी महंगुआ के वियाह रमिया से हो जाय पंडित पर्वतानंद समझ गए और जल्दी से उन्होंने अगले हप्ते का मुहूर्त निकाल दिया रात के लगभग तीन बज चुके थे मुनहर मिनकी और महंगुआ दारू के नशे में धुत हो चुके थे तुरन्त समरथ ने ठाकुर विक्रम सिंह द्वारा दिये गए हज़ार रुपये को मुनाहर को दे दिया बोला मुनहर अगले हफ्ते पंडित जी के बताए शाइत दिन शनिवार के मिनकी तू और पट्टीदारी रिश्तेदारी से जेके लियावल चाह टोला कढ़वा वियाह होई और फरी के नाच जरूर लाय मुनहर अंग्रेजी दारू की नशा में बाग बाग आसमाने उड़त रहें बोलेंन मालिक क इकबाल बुलंद हम लोग सही टाइम पर सधुआ ठाकुर विक्रम सिंह के रियासत ठाकुर सत्यब्रत सिंह के मनुहार से वियाहे पहुंच जॉब पंडित जी जा चुके थे रात के चार बज चुके थे ठाकुर सत्यब्रत सिंह ने अपने कुर्ते के पैकेट में हाथ डाला और हज़ार रुपये मुनहर को देते बोले ई रख महंगुआ के वियाहे खातिर और फिर सोने के लिये समरथ को हिदायत दिया कि कल बिना मिले ना जाये समरथ ने कहा मालिक हमरी इतनी औकात नही है। दूसरे दिन सुबह लगभग बारह बजे ठाकुर सत्यब्रत सिंह ने समरथ को बुलाया और खाना खिलाने के बाद कुछ जवरा देकर विदा किया समरथ फिर प्रचंड गर्मी में मनुहार से सुधना के लिये चल पड़ा और लगभग नौ बजे रात सीधे ठाकुर विक्रम सिंह के हवेली पहुंचा वहां पहुंच कर उसने ठाकुर सत्यब्रत सिंह से हुई सारी बाते विस्तार से बताई ठाकुर विक्रम सिंह को बहुत राहत मिली ।निर्धारित समय पर मुनहर मिनकी दूल्हा महंगू पहुंचे और विवाह हुआ एक तो भयंकर गर्मी और सभी कच्ची दारू के नशे में धुत फरी करते हुये समस्त वैवाहिक कार्यक्रम को सम्पन्न कराया और रमिया विदा होकर मनुहार महंगू की लुगाई बन चुकी थी लगभग आठ माह बाद उसने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया जो किसी बड़े घराने की औलाद जैसी दिखती थी जिसका नाम बड़े प्यार से महंगू ने चुनिया रखा।


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