निश्छल था तेरा प्यार
निश्छल था तेरा प्यार
निश्छल, निष्ठावान था तेरा प्यार,
तू नापाक इरादे उसके पढ़ न सकी !
तू खुद ही भोली, नादान बनकर
उसके हैवानियत भरे इश्क की असली इशारे समझ न सकी !
पर इसमें आखिर तेरा दोष ही क्या है?
यही न कि तुमने अटूट विश्वास किया और बदले में अविश्वास भरा धोखा मिला !
तूने अपने आप को समर्पित कर दिया और उसने अपने हवस मिटाने का झूठा ढोंग रचा !
तरस आती है उस निर्लज्ज पे ,
कि उसे तेरी मासूमियत को देखकर तनिक भी लाज- शर्म नहीं आया !
वो भुजाएं गल क्यों नहीं गई उसके जब उसने तेरे पवित्र शरीर को हवस की निगाहों से हाथ लगाया ?
खैर! जो बीत गई सो बात गई,
दिल तेरा तोड़कर जो जख्म दिया है उसने,
कसक तो कभी मिटेगी नहीं !
ये सोच कर दिल को पल भर के लिए तसल्ली दे देना,
कि वो तुम्हारे पवित्र प्यार के काबिल ही नहीं था !
मगर ऐ दोस्त ! दो राहे पर खड़ी जिंदगी में,
तू कर फिर से शुरूआत नई।
ठान ले दृढ़ संकल्प मन में,
इतना ऊँचा उठ की तुझसे मिलना तो दूर तुझे देखना भी उसके नसीब हो न पाए !
कर गुजर कुछ ऐसा कि उसकी सोच भी वहाँ पहुंच न पाए!
बदला भी लेना है तुझे मगर ,
यह ध्यान रखना कि बदला लें हम बदली अंदाज में !
गर रास्ते में फिर से कोई खुद को हमसफ़र बनाने की बात कहे तो ?
तो इशारे उसके इस बार जरूर समझ लेना,
अबकी बार नीयत उसकी समझने की भूल से भी भूल मत करना !
गर रिश्ता जिस्म का कायम करना चाहे कोई,
तो आईना दिखाकर औकात उसकी दिखा देना !
सदैव आगे बढ़ते जाना तुम !
खुद के प्रयासों से मिली मुकाम पाकर तुम ।
खुशियाँ उसी में तलाश लेना !
बेबस हूँ मैं भी ! मुझे एक टिस मन में चुभ रही,
कि मैं चाहकर भी तेरे लिए कुछ कर नहीं पा रहा !!