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Dr Alka Mehta

Horror Thriller

4.6  

Dr Alka Mehta

Horror Thriller

वो हवेली

वो हवेली

2 mins
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सुना है देखा तो नहीं है,

 शहर से दूर जंगलों में,

 एक सुनसान हवेली है,

 पर वो एक पहेली है।


सुना है देखा तो नहीं है,

पर एक खंडहर से ही,

एक पहेली एक हवेली,

रातों में अँधेरा होने पर , 

जब बिजली कड़कती है।


एक खिड़की खुलती-बंद होती है,

एक पहेली एक हवेली,

सुना है देखा तो नहीं है,

शहर से दूर बीहड़ जंगलों में,

उस हवेली में भूतों का डेरा है,

शायद ही कोई उस हवेली में ठहरा है।


आती हैं कुछ आवाजें वहां से,

 जब चारों ओर सन्नाटा है,

 देखा है किसी -किसी ने,

 कुछ भटकते साये,

 पर वो किसी को सताते नहीं,

 किसी को भी डराते नहीं।


उनकी अपनी ही दुनिया है,

जो जागती है अँधेरा होने पर,

हाँ-हाँ मैंने भी सुना है देखा तो नहीं है,

उस तरफ कोई जाता नहीं,

उस हवेली का पता बताता नहीं।


सुना है अब नहीं आती कोई आवाज़,

 सोचा जानें ये राज़,

एक दिन बड़े कदम उस हवेली की ओर,

न मालूम था पता न कोई ठोर।


पेड़ों के सरसराहट ओर सायं-सायं ,

एक सिरहन जगाती थी,

पर हवेली का राज़, जानने की इच्छा थी,

चलते-चलते कदम थक कर चूर हुए,

तभी नज़र आयी एक हवेली एक पहेली।


हवेली जल कर खाक हुई ,

हासिल बस उसकी राख हुई,

लौटते -लौटते शाम हुई,

फिर चारों तरफ अँधेरा था,

आने लगीं आवाज़ें जैसे कोई ,

गा रहा था बुला रहा था कोई,

पढ़ते-पढ़ते हनुमान चालीसा।


 उलटे पैर घर को भागे,

 घर पहुँच कर दम लिया,

 फिर याद आया हवेली तो 

 जल कर खाक हुई,

 आवाज़ें कहाँ से अब तक 

 आती हैं।


सुना है देखा तो नहीं है,

शहर से दूर एक पहेली ,

एक हवेली है, वो हवेली।


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