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Dr Alka Mehta

Tragedy

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Dr Alka Mehta

Tragedy

माँ तुम क्यों

माँ तुम क्यों

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माँ तुम क्यों कहती हो लड़के रोते नहीं हैं,

नहीं-नहीं बिलकुल गलत तुम कहती हो,

हम बताएं कब-कब वो रोते हैं,

पैदा होते ही बच्चे रोते हैं,

वो इंसान के बच्चे होते हैं।


बचपन में अपनी ज़िद मनवाने को,

मनचाहा खिलौना पाने को,

कौन बच्चा रोया नहीं,

रोते हैं लड़के जब अपने यारों को खोते हैं,

लड़के भी इंसान ही तो होते हैं


स्कूल में कम नंबर आने पर,

दोस्तों से पिछड़ जाने पर,

अपनों से बिछड़ जाने पर,

माँ क्यों लड़के का ये कहकर तुमने दम्भ बढ़ाया है,

यह कैसा उल्टा जीवन का पाठ पढ़ाया है,

इंसान जब तक व्यक्त नहीं कर पायेगा अपने मन के भाव,

रह जायेगा उसके जीवन में कोई अभाव।


माँ तुम क्यों कहती हो लड़के रोते नहीं हैं,

नहीं-नहीं बिलकुल गलत तुम कहती हो,

रोते नहीं किसी के आगे तो ये सोच कर,

कि उसका कोई मजाक उड़ाए नहीं,

तू लड़की है कहकर कोई चिढ़ाए नहीं,

रोते हैं लड़के 

राजनीति में कुर्सी के छिन जाने पर,

निजी जीवन में अपनी प्रेयसी के द्वारा ठुकराए जाने पर,

जब छिन जाती कुर्सी और छिन जाती है प्रेयसी तो 

सड़कों पर गलियों में सरेआम रोते देखा है,

इतिहास देख लो रोया था फरहाद शीरी को खोने पर,

मजनूं के निकले थे आंसू लैला के छिन जाने पर,

रोये थे बादशाह कई राज्य अपना छिन जाने पर,

रोता है हर पति ,

बीवी द्वारा सताए जाने पर और बीवी से पिट जाने पर।


और माँ तुम कहती हो कि लड़के रोते नहीं,

रोना तो है अपने भावों का प्रदर्शन कोई शर्म की बात नहीं,

रो तो कोई भी सकता है रोने की कोई जात नहीं,

डाक्टर की टेबल पर जब एक दिल का रोगी आया ,

तो किसी ने समझाया कि खोल देते दिल अगर यारों के आगे तो

खुलवाना न पड़ता एक डाक्टर के आगे।


रो लेने से तो जी हल्का हो जाता है,

दो आंसुओं में मन का मैल बह जाता है,

बह जाने दो माँ मन के उन आवेगों को ,

रोक रहे जो बाधा बन कर जीवन के संवेगों को,

रोते हैं रोते हैं माँ लड़के भी रोते हैं और क्यों न रोएं

क्या पत्थर हैं ,या जड़ हैं ,या मूर्ख हैं?

समझ न पाते मानवीय संवेदनाओं को क्या नासमझ हैं?

माँ तुम क्यों कहती हो लड़के रोते नहीं हैं,

नहीं-नहीं बिलकुल गलत तुम कहती हो ।


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