जीते जी
जीते जी
जीते जी जिन माता-पिता से लिया न कोई
आशीर्वाद आज मनाने जा रहे थे उनका
धूमधाम से श्राद्ध ,
पूछते थे न कभी उन बुजुर्गों से उनका हाल
थे वो बुजुर्ग बेहाल जिए वो जितने साल,
इन बेटों ने दी है ऐसी एक कहानी
बरसों सुनते रहेंगे सबकी जुबानी,
बड़े हो गए बेटे उनके और सबके हो
गए परिवार,
माता-पिता हो गए तन से बीमार और
किस्मत से लाचार,
बढ़ गया बहुओं और बेटों का अत्याचार,
इंसानियत हवा हो गयी और भूल
गए शिष्टाचार ,
देख कर उनका ये हाल कुछ गाँव
वाले मदद करने को आये
ये है हमारे घर का मामला कोई
बीच में न आये कहकर गाँव वाले भगाये,
बूढ़े माता-पिता पर यूँ करते थे अत्याचार,
न कोई दवा दी और न कोई वैद्य
बुलाया जब जब हुए वो बीमार,
रोटी को तो न तरसे होंगे बस चाहते थे
थोड़ा सा प्यार,
जीते जी जिन माता-पिता से लिया न कोई
आशीर्वाद आज मनाने जा रहे थे उनका
धूमधाम से श्राद्ध ,
सुना था लोगों से धोखे से उन बुजुर्गों की
छीन ली ज़मीन, जायदाद और संपत्ति ,
इस धोखे से हैरान हुए थे वो बुजुर्ग दंपत्ति,
रातों रात फिर उन्हें पहुंचा दिया हरिद्वार,
गाँव वालों को कहा कर आये उनका
अंतिम-संस्कार,
गाँव वाले मौन रह गए किया न
कोई सवाल,
जैसा इन बेटों ने किया कोई करे न
अपने माता-पिता का हाल,
गाँव लौट गाँव वालों और पंडित को
तेहरवें का न्यौता दिया,
तेहरवें के दिन पंडित और गाँव वाले
जब भोज के लिए आये,
देखा जो वहां नज़ारा देख कर चकराए,
कमरे में लटक रहीं थीं दो लाशें
एक माता की और एक पिता की,
और पास में पड़ी हुई थी एक चिट्ठी
जिसको पढ़कर पैरों तले ज़मीन खिसकी,
चिट्ठी पढ़कर गाँव वालों को समझ आया
कैसे उन बेटों ने सबको मूर्ख बनाया ,
माता-पिता को छोड़कर हरिद्वार
कहते रहे कर आएं हैं उनका संस्कार,
माता-पिता एक दिन पहले गाँव लौट आये
तो वे समझ पाए कि उनके
तेहरवें का भोज है अगले रोज,
एक फैसला कर लिया था कुछ सोच
और लिख दिया चिट्ठी में दे कर आशीर्वाद,
बेटों शायद तुम भूल गए जीते जी
नहीं श्राद्ध तो होता है मरने के बाद,
जीते जी जिन माता-पिता से लिया न कोई
आशीर्वाद आज मनाने जा रहे थे उनका
धूमधाम से श्राद्ध ,
सारा गाँव सन्न रह गया हुआ जो ये
प्रसंग बच्चा बूढ़ा और जवान हर कोई था दंग ,
सबने मिलजुलकर उन बुजुर्गों का
बहुत ही श्रद्धा से श्राद्ध किया ,
जिनको उनके अपनों ने न प्यार दिया,
उन बेटों के लिए सबने कहा है धिक्कार
और कर दिया गाँव से सामाजिक बहिष्कार.