जवाब दो
जवाब दो
आज भी पहले सी सुबह और पहले सी शाम होती है,
हर युग कर रहा है ये सवाल क्यों सीता रामजी रोती है,
महाभारत में जब दुर्योधन ने खलनायक का काम किया,
क्यों द्रौपदी का भरी सभा में दुर्योधन ने अपमान किया,
किसने उसे यह हक़ दिया नारी पर अत्याचार का,
नारी की कोख से जनम लेकर नारी से दुर्व्यवहार कर,
क्यों नहीं राम ने भी सीता का सम्मान किया,
मर्यादा पुरषोत्तम कहलाये कैसे,
क्यों समाज के कहने पर अपनी भगिनी को त्याग दिया,
क्या सुख पाया सीता ने दे कर उस पुरुष का साथ,
दुनिया के ऊँगली उठाने पर अपनी छवि बचाने को
छोड़ा उस पावन और पवित्र सीतादेवी का हाथ,
सीता को जो माता कहकर कभी बुलाते थे,
वो ही आगे बढ़कर ऊँगली उठाते थे,
कितना टूटा होगा सीता का दिल,
न दिखती होगी कोई राह न कोई मंजिल,
अब क्या रह गया जीवन में सोच दिया जीवन को विराम,
सोचती होगी क्या देवता है ये राम ऐसे
कर्मों से बन गए मेरी नज़रों में ये आम,
अपनी नज़रों में जब राम को गिरा पाती होगी
तो खुद को ये समझाती होगी,
समझा नहीं जो मेरा दुःख मेरा दर्द
कैसा है इंसान और कैसा मर्द,
निर्दयी,निष्ठुर और कठोर हृदयी पाया जब राम को,
अपनाया जीवन में सीता ने खुद ही विराम को,
अब युग बदला, बदले मौसम , रीति और रिवाज़,
क्यों आज भी है मगर वही पुरुष-प्रधान समाज,
खुद कैसा भी हो पर पुरुष आज भी नारी में ढूंढ रहा है सीता,
न जाने हर नारी में दिखती है उसे प्रणीता,
अपने मतलब को पुरुष बदले अपने रंग,ढंग और स्वाद,
पर नारी पर आज भी कई अंकुश हैं नहीं है वो आज़ाद,
ये सच है नारी की अग्नि -परीक्षा को
उसने नारी को अग्नि में नहीं झोंका,
पर नारी को अपमानित करने का छोड़ा कोई भी न मौका,
करता है आज भी नारी की अग्नि-परीक्षा वो,
इस युग में है अपनी चतुराई से काम लिया,
यूँ घर से बाहर जाती नारी का गुप्-चुप पीछा करवाया,
घर पर पत्नी की हर हरकत पर करने को शिरकत,
हर कमरे में कैमरा लगवाया,
पकड़े जाने पर बहुत पछताया,
पर भला-मानस नारी को अग्नि में झोंक न पाया,
नारी ने सशक्त होकर पुरुष के खिलाफ
सख्त जो कानून बनवाया,
बदला नहीं मानसिक रूप से पर बेचारा घबराया,
हर युग पूछेगा सवाल क्यों सीता हर युग में रोती है,
क्यों कब तक रहेगा ये पुरुष -नारी में अलगाव,
कैसे आएगा बदलाव और कौन लाएगा बदलाव,
नारी को अपने लिए खुद ही लड़ना होगा,
छोड़ बीते युग को आगे बढ़ना होगा,
जब तक चुप-चाप सहती जाएगी और भी दबाई जाएगी,
होगी न जब तक नारी मन में जागृत अंतर -चेतना,
बढ़ती रहेगी नारी की पीड़ा और वेदना,
सहती रहेगी बन कर आजीवन वेदना कब तक,
उसकी वेदना की पीड़ा न समझी जाएगी ,
चुप-चाप दबकर सहेगी हर पीड़ा जब तक,
लेता रहेगा पुरुष उसकी अग्नि-परीक्षा तब तक.
आएगी नारी में न क्रांति की लहर जब तक,
देती रहेगी नारी अग्नि-परीक्षा तब तक,
हर युग चीख-चीख कर इस समाज से
पूछेगा सवाल जवाब दो की क्यों
हर युग में सीता रोती है,
है आशा यही कि एक दिन वो आएगा जब
समाज अपनी करतूतों पर लजायेगा और
द्रौपदी और सीता के अपमान पर शरमाएगा,
शायद फिर मिलेगा जवाब उन सवालों का कि
सीता की अग्नि-परीक्षा होगी कब तक।
