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Dr Alka Mehta

Abstract

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Dr Alka Mehta

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रिश्तों का झुरमुट

रिश्तों का झुरमुट

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इतने सारे रिश्ते लेकर मैं इस दुनिया में आई हूँ,

रिश्तों के झुरमुट हैं फिर भी मैं पराई हूँ,

कहीं मामी, चाची, मौसी, बुआ, दादी,नानी बनकर आई हूँ,

कभी माँ बनकर अपने बच्चों पर ममता लुटाऊँ,

कभी तो पत्नी बनकर अपने साजन का दिल लुभाऊँ,

घर में आयी बहु बनकर मैं ही गृहलक्ष्मी हूँ,

बेटी बनकर माता-पिता की सेवा करती,

बाकी सभी रिश्तों में बुज़ुर्ग बनकर 

बन जाती बरगद की छांव ,

इतने रिश्तों में उलझा है मेरा जीवन 

रिश्तों के झुरमुट हैं फिर भी मैं पराई हूँ,


मैंने अपने घर-आँगन में प्रेम-प्यार से इक पौधा लगाया है,

इस पौधे को मैं अपनी कल्पनाओं के कई रंगों से सजाया है,

पौधा है ये परिवार मेरा और हर रिश्ता इसकी टहनी है,

मिलजुलकर रहे हर टहनी बात यही बस कहनी है,

मैंने तो अपने मन से हर रिश्ते का फ़र्ज़ निभाया है,

मैंने अपने पौधे को धूप,आंधी और तूफानों से बचाया है,

मेरे इस पौधे पर देवताओं ने स्नेह और आशीष बरसाया है,

रिश्तों को इक डोर में बांधे रखने को मैंने किये कई त्याग,

फिर क्यों हर रिश्ता अलाप रहा है अपना-अपना राग,

हर कोशिश करने पर भी रिश्तों में आई दरारें पाट नहीं पाई हूँ,

क्या हो गया क्यों मैं इनको समझ नहीं पायी हूँ,

रिश्तों के झुरमुट हैं  फिर भी मैं पराई हूँ,


अब ये पौधा पनप गया है और बन गया है पेड़,

रिश्तों पर भी असर कर गयी वक़्त की थपेड़,

रिश्तों से आज कहाँ चली गयी  मिठास ,

किस स्वार्थ ने भर दी है रिश्तों में खटास,

हर रिश्ता मांग रहा है अपना-अपना आकाश,

रिश्ता की चाहत है बस जैसे अलगाव,

कैसे मैं देख पाऊँगी ये फैलाव,

दूर खड़ी रह कर मैं देखूं तो ये समझ पायी हूँ,

रिश्तों के झुरमुट हैं  फिर भी मैं पराई हूँ,


जीवन इन रिश्तों का गहरा है भंवर,

रिश्तों का अम्बार ही है इस जीवन का सफर,

रिश्तों के बागीचे में खिले हैं रंग-बिरंगे फूल,

किस कारण से छा रही है इन पर धूल,

 मुझे संभाल कर रखना ही होगा इन टहनियों को 

कहीं जाये न बिखर,

होगी अगर न लापरवाही तो जायेगा ही जीवन संवर,

मुझे पूरी कोशिश करनी होगी रहे न कोई कसर,

अबसे और करुँगी मैं हर रिश्ते में सम्पूर्ण समर्पण,

तभी बना रहेगा रिश्तों में आकर्षण,

तब मैं न खुद पर रोऊँगी और न ही कहूँगी,

रिश्तों के झुरमुट हैं  फिर भी मैं पराई हूँ,



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