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Dr Alka Mehta

Others

4.5  

Dr Alka Mehta

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लिव-इन ही है

लिव-इन ही है

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इस कलयुग में लिव-इन ही को

कहते हैं बिन फेरे हम तेरे,

हे मानव! क्या तुझे हो गया

अक्ल पर पत्थर पड़ गए तेरे,

लिव-इन है बिना भावना रिश्तों

का आलिंगन,

बिना भाव कैसे होगा रिश्तों में

समर्पण,

माना अगर नहीं है गहरा प्यार ,

फिर भी मिल जाता है लिव-इन

का अधिकार,

लिव-इन वाला प्यार महज़

एक छलावा है,

प्यार अगर दिल से नहीं तो

बस दिखावा है,

हे युवक तुमसे एक गुज़ारिश है ,

समझो लिव-इन में रहकर न

समाज को भटकाओ,

लिव-इन का मतलब है कर्तव्यों

से भाग जाओ,

आधुनिकता के नाम पर

उच्छृंखलता न फैलाओ ,

लिव-इन में रहकर न यूँ

अराजकता फैलाओ ,

देश की हमारी है सभ्य संस्कृति

दुनिया को दिखलाओ,


इस कलयुग में लिव-इन ही को

कहते हैं बिन फेरे हम तेरे,

हे मानव! क्या तुझे हो गया

अक्ल पर पत्थर पड़ गए तेरे,

माना के कोर्ट ने भी दिया है

लिव-इन का अधिकार,

पर मांगे से भी मिलता क्या

कभी सच्चा प्यार,

अधिकारों से पहले देश के प्रति

अपने कर्त्तव्य निभाओ,

लिव-इन में मत पड़ो अभी

वक़्त है जाग जाओ,

लिव-इन है एक वायरस हमारे

देश को बीमार होने से बचाओ,

ऐसा कोई निर्णय न लेना कि

अंतकाल पछताओ,

बड़े-बड़े तूफानों से खीँच कर

किश्ती हमारे देश कि 

लाये हैं किनारे पर नेहरू

और बापू गाँधी,

तुम अपनी हरकतों से पैदा

न कर लो अनंत तूफान और आंधी,

अपनी खातिर जीने वाली नस्लें

कभी इतिहास नहीं बनातीं,

दूसरों कि लिए समर्पित जिंदगियां

इतिहास पर अमिट छाप छोड़ जातीं 


इस कलयुग में लिव-इन ही को

कहते हैं बिन फेरे हम तेरे,

हे मानव! क्या तुझे हो गया अक्ल

पर पत्थर पड़ गए तेरे,

कहाँ जाना चाहते हो हे युवक क्या

लिव-इन को लेकर लक्ष्य है,

याद रखो देश हमारा सभ्यताओं ,

परम्पराओं और संस्कृतिओं का

एक वृक्ष है,

क्यों न इसकी टहनी बनकर

इसका हिस्सा बन जाओ ,

और नैतिकता अपना कर

देश की शान बढ़ाओ,

जिन अनैतिक मूल्यों को मिला नहीं

समर्थन,

उनको अपनाकर जीना तो

व्यर्थ है जीवन,

देश की हमारे सोचो तो जनसंख्या

बहुत है,

लिव-इन को देश में पर मिला

नहीं जनमत है,

लिव-इन है बिना भाव रिश्तों

का आलिंगन ,

कैसा है अनैतिक है मर्यादाओं

का उल्लंघन ,

हे युवक! मत उलझो इस भंवर में ये तो

भ्रमजाल है,

जो सब हैं इसमें उलझे उनका हाल

बेहाल है,

मत लाँघो उन परम्पराओं और

संस्कृतिओं की 

सीमा -रेखा को जिनसे जीवन

की संभाल है,

नौजवानों देश के भविष्य की

तुम्हारे हाथों में है डोर,

निज स्वार्थ में पड़कर न करो इसे

कमजोर,

इस कलयुग में लिव-इन ही को

कहते हैं बिन फेरे हम तेरे,

हे मानव! क्या तुझे हो गया

अक्ल पर पत्थर पड़ गए तेरे,



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