लिव-इन ही है
लिव-इन ही है
इस कलयुग में लिव-इन ही को
कहते हैं बिन फेरे हम तेरे,
हे मानव! क्या तुझे हो गया
अक्ल पर पत्थर पड़ गए तेरे,
लिव-इन है बिना भावना रिश्तों
का आलिंगन,
बिना भाव कैसे होगा रिश्तों में
समर्पण,
माना अगर नहीं है गहरा प्यार ,
फिर भी मिल जाता है लिव-इन
का अधिकार,
लिव-इन वाला प्यार महज़
एक छलावा है,
प्यार अगर दिल से नहीं तो
बस दिखावा है,
हे युवक तुमसे एक गुज़ारिश है ,
समझो लिव-इन में रहकर न
समाज को भटकाओ,
लिव-इन का मतलब है कर्तव्यों
से भाग जाओ,
आधुनिकता के नाम पर
उच्छृंखलता न फैलाओ ,
लिव-इन में रहकर न यूँ
अराजकता फैलाओ ,
देश की हमारी है सभ्य संस्कृति
दुनिया को दिखलाओ,
इस कलयुग में लिव-इन ही को
कहते हैं बिन फेरे हम तेरे,
हे मानव! क्या तुझे हो गया
अक्ल पर पत्थर पड़ गए तेरे,
माना के कोर्ट ने भी दिया है
लिव-इन का अधिकार,
पर मांगे से भी मिलता क्या
कभी सच्चा प्यार,
अधिकारों से पहले देश के प्रति
अपने कर्त्तव्य निभाओ,
लिव-इन में मत पड़ो अभी
वक़्त है जाग जाओ,
लिव-इन है एक वायरस हमारे
देश को बीमार होने से बचाओ,
ऐसा कोई निर्णय न लेना कि
अंतकाल पछताओ,
बड़े-बड़े तूफानों से खीँच कर
किश्ती हमारे देश कि
लाये हैं किनारे पर नेहरू
और बापू गाँधी,
तुम अपनी हरकतों से पैदा
न कर लो अनंत तूफान और आंधी,
अपनी खातिर जीने वाली नस्लें
कभी इतिहास नहीं बनातीं,
दूसरों कि लिए समर्पित जिंदगियां
इतिहास पर अमिट छाप छोड़ जातीं
इस कलयुग में लिव-इन ही को
कहते हैं बिन फेरे हम तेरे,
हे मानव! क्या तुझे हो गया अक्ल
पर पत्थर पड़ गए तेरे,
कहाँ जाना चाहते हो हे युवक क्या
लिव-इन को लेकर लक्ष्य है,
याद रखो देश हमारा सभ्यताओं ,
परम्पराओं और संस्कृतिओं का
एक वृक्ष है,
क्यों न इसकी टहनी बनकर
इसका हिस्सा बन जाओ ,
और नैतिकता अपना कर
देश की शान बढ़ाओ,
जिन अनैतिक मूल्यों को मिला नहीं
समर्थन,
उनको अपनाकर जीना तो
व्यर्थ है जीवन,
देश की हमारे सोचो तो जनसंख्या
बहुत है,
लिव-इन को देश में पर मिला
नहीं जनमत है,
लिव-इन है बिना भाव रिश्तों
का आलिंगन ,
कैसा है अनैतिक है मर्यादाओं
का उल्लंघन ,
हे युवक! मत उलझो इस भंवर में ये तो
भ्रमजाल है,
जो सब हैं इसमें उलझे उनका हाल
बेहाल है,
मत लाँघो उन परम्पराओं और
संस्कृतिओं की
सीमा -रेखा को जिनसे जीवन
की संभाल है,
नौजवानों देश के भविष्य की
तुम्हारे हाथों में है डोर,
निज स्वार्थ में पड़कर न करो इसे
कमजोर,
इस कलयुग में लिव-इन ही को
कहते हैं बिन फेरे हम तेरे,
हे मानव! क्या तुझे हो गया
अक्ल पर पत्थर पड़ गए तेरे,