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Sonam Kewat

Tragedy

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Sonam Kewat

Tragedy

गंगा नदी

गंगा नदी

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बड़ा ही प्रसिद्ध भारत में मेरा नाम है,

पवित्रता से पापों को धोना मेरा काम है।


गंगा माता का दर्जा मुझे दिया गया है

शवदाह भी मेरे तट पर किया गया है।


हिमालय के गंगोत्री से मैं निकलतीं हूँ,

जगह जगह पर आकार बदलतीं हूँ।


प्रयाग से भी जुड़ा हुआ ये बंधन है,

गंगा, यमुना, सरस्वती का संगम है।


कुंभ मेला देखने अनगिनत आतें है,

और फिर मुझे प्रदुषित कर जातें हैं।


पहले घाट पर ही मुरदे जलते थे,

अब लाशें भी पानी पर तैरते हैं।


अभियान से नदी साफ कर जाओगे,

लोगों में जागरूकता कहाँ से लाओगे ।


श्रद्धा चले तो गंगाजल मलिन हो जाता है,

पुरानी बातों में मेरा मन लीन हो जाता है।


पूर्वजों ने तांबे के सिक्के मुझमें डालें है,

कई गंदगी को झट से वो निकाले है।


अब तांबा नहीं बस सिक्का फेंकते हैं,

दूर दूर से आकर लोग मुझे देखते हैं।


पाक मैं करूँ पर तुम ना नापाक करों,

गंदगी ना करों भले मुझे ना साफ करों।


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