झूठा रिवाज़ प्रेम का
झूठा रिवाज़ प्रेम का
हम साथी जीवन भर के
यूं बिछड़ेंगे
सोचा न था।
ये लम्हे वक्त के दरिया में
यूं डूबेंगे
सोचा न था।
वो नगमे तराने किस्सों की
वो रातें तेरे मेरे हिस्सों की
वो रुख़सार पे लाली चुम्बन की
वो शरमीली घटाएं आलिंगन की
सब वक्त के फंदे
यूं चढ़ेगे
सोचा न था।
हम साथी जीवन भर के
यूं बिछड़ेंगे
सोचा न था।
वो कार्तिक के मद्धिम झरोके
वो समाजी रिवाजों के धोखे
वो रिश्ते हमारे एहसासों के
वो प्रेम पत्र विश्वासों के
बिन पुरवाई यूं उड़ेंगे
सोचा न था।