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shweta mishra

Romance

3  

shweta mishra

Romance

गुजरना

गुजरना

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उसका जाना

कुछ यूं हुआ

जैसे बसंत की बहार

सावन में बारिश की फुहार।


सर्दी की

चाय में अदरक

माघ की मस्त

तीखी धूप कड़क

वो कवि के मनोभाव

किसी शायर के

छिपे घाव।


नायिका के

अधरों की चाशनी

पूरनमासी की रौशनी का

न होना

उसका जाना यूं हुआ

जैसे भादों की

बिजली में खलबली।


बाग की डालियों में कली

बाजरे की कलगी पर

चिडिया की कोलाहल

कैरियों पर बैठती कोयल।


नदी से तैरते एहसास

कलम से

कुछ लिखने की प्यास

वो नायक का

परदेशी रुआब।


वो वादियों पर

मिलन के ख्वाब का

न होना।


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