गुम हो गया है
गुम हो गया है
घर के अंदर ही
घर कहीं गुम हो गया है
म्यूजियम हो गया है
जीवंत पुतलों का।
पुतले यूं तो हाड़ मास के
पर कमी हो गयी जुबां की
अब नहीं माँ की लोरियां
अब नहीं बचकानी किलकारियां।
अब पिता की डाँट डपट
अब नहीं भाभी की हठखेलियाँ
अब है
प्रसाधनों की हर दराज।
शब्द भी अब सूम हो गया है
घर के अंदर ही
घर कहीं गुम हो गया है।