लेखनी
लेखनी
लिखना चाहूं
मन व्यथित है
कलम स्थगित
लिखूं भी तो क्या
चाँद को प्रेम में
किसी के माथे की
बिंदी होना
या व्यर्थ प्रेम में
किसी के मन का
सुकूं खोना
क्या इस भेड़चाल में
किसी की दबी
सुप्त अंतसचेतना लिखूं
या लिबासों सा
उतरे
किसी के बदन की
वो वेदना लिखूं
भेद उजागर करूं कितने
लांछन शब्दों पर आये
बेहतर है
मन व्यथित रहे
और
कलम स्थगित हो जाए।।
