लड़की सी नदी
लड़की सी नदी
जिनवनदायनी बहती जलधारा
कभी प्राणदायनी अमृत से वर्णित
कभी इस तरह उपेक्षित
कि कम पड़े सभी कूड़े -गालिओं से तिरस्कृत !
मनुष्य नाम लेते ही मानवता की कमी पड़ जाये
ऐसे बड़ी संख्या वाले और बड़ी भुजाओं वाले आदमी
कितने निरलज्जता का पूरक बन जाते हैं
जिसकी पूजा करते हैं पुण्य पाने की खातिर
उसको मलिन करने की कोई कसर भी नहीं छोड़ते !
मैं वो सदियों सी बहती नदी की जलधारा नहीं
जो उपेक्षा के बाद भी परोपकार करे
मैं वो ध्वस्त करनेवाली बेबाकी सुनामी हूँ
जिसके आने पे सिर्फ वही सुनाई देती है
तो अगर चाहते हो जिन्दा रहना।
तो इस शांत शीतल प्राणदायिनी
प्रकृति वाली नदी को कभी मत छेड़ना
खुद का तो पता नहीं तुम्हारी रूह भी
तुमसे ना मिल पाए ऐसी सजा मिलेगी
तुम्हारे जिन्दा रहने के भीतर ही
हवा अपना रुख बदल ले जिसके एक आह्वाहन पे
तुम उसे कमजोर समझने की
भूल का परिणाम तो देख ही चुके हो
फिर भी कहा मानने वाले तो फिर
मिटने के लिए तैयार हो जाओ
कही ऐसा ना हो मिटे भी ऐसे की
मिट्टी भी हवा में फुर्र हो गयी
2 गज जमीन तो बहुत दूर की बात है !
परेशानी ये है इनको रोकने वाला कोई होता ही नहीं
कौन समय निकाले दूसरे की समस्या दूर करे
इसीलिए तूफान रूपी सुनामी आती है तो
वो अच्छा बुरा सबको नेस्तोनाबूद कर देती है !
तुम लाख उपाय कर लो
प्रकृति का कहर रुके ना रुकता है
जिसकी पूजा करनी चाहिए,
उसका अपमान करने पे यही फल मिलता है !
तो कुछ नहीं होगा जो अपनी गर्दन ऊपर रखो
भले गंदगी से गुजर रहे, गन्दगी फैला रहे कुछ मत करना
बस ज़ब सैलाब आये ना सांस लेने की प्रक्रिया से
पहले ही जीवन से सन्यास मिल जायेगा हमेशा के लिए !
जो खुद का अस्तित्व भी खुद ना पाए
ऐसे लोग जीवन के प्रांगण के नेता बन बैठे हैं
जिनकी गीली हुई गली हुई हड्डिया भी ना मिल पाए
ऐसे सैलाब विनाश के प्रणेता बने बैठे है !
रहो बैठे, ऐसे ही बिना क्षड़ गवाए
कहना कुछ भी गर श्मशान ना पहुचाये !
कितने लोग बिना बोल पाए निकल लिए समझ ना आया ना
सच है समझ आएगा भी नहीं
मरना जो लिखा जा चूका है
विनाश जो होना निश्चित है !
हम भी देखते हैं उस पार क्या क्या लेके जाते हो,
उफ्फ्फ !खुद का शरीर भी तो यही छोड़ जाते हो !
जिंदगी भर गंध मचा के जाने के बाद भी
गंदगी का सामान यही छोडे जा रहे
जाओ जाओ भाग्य, शक्ति और
पाखंड समेट के तो ले जाओ !
तिरस्कार करोगे तो बच ना पाओगे
कुछ भी कर लो चाहे रह ना पाओगे
नदी नहीं रहेगी हमेशा प्राणदायिनी
जीवन तुम्हारा है सवारने की बजाय
दूसरों से खिलवाड़ करोगे तो
अंजाम की तैयारी जरूर कर लेना
बहुत सारे सच्चे और अच्छे
लोग मिलकर भी नहीं बचा पाएंगे !
तो उपेक्षा अपने भीतर की बुराइयों की करो
ईष्या से दूर रहो, द्वेष भीतर ना पालो
और सबसे जरूरी खुद की मैल
मिटाने नदी को दूषित ना करो !
जिओ तो इंसानियत से, दूर रहो हैवानियत से
संकल्प करो मन से
पूजनीय नदी की कभी उपेक्षा नहीं करेंगे
जो ना कर सके उपाय तो ऐसा जीवन निरर्थक
करे ऐसा जो खुद भले मिट जाये
पर परोपकार की मिशाल बन जाये।