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Rashi Rai

Abstract

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Rashi Rai

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अकेला सफऱ एक दुर्गम पहाड़ी तक

अकेला सफऱ एक दुर्गम पहाड़ी तक

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कुछ सुनी सुनाई खबरों से

कुछ कही देखी बातों से

भी बेखबर

मैं एक रोज चल पड़ी

एक खोज में बढ़ चली


बिना सोचे कि जो मै सोच रही

वैसा कुछ होगा ये मुमकिन नहीं

बिना ये जाने असलियत

बहुत मुश्किलें देती है

कई बार दिल धड़का

कई बार मैं काँप गयी कुछ मेरे साथ

बुरा ना हो ऐसा सोचने से ही


पर ये जिद थी मेरी

कुछ भी हो जाये जो सोचा है वहां तक

तो जाऊँगी ही

सोचना बोलना बड़ा आसान है पर

झूझना झेलना और सामना करके

आगे बढ़ना बहुत मुश्किल है


और मै इस दुर्गम राह पे चलके

किसी को उस पे अकेले जाने का

सुझाव नहीं दूंगी

मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश रखी

कि मुश्किल में ना फ़ँस जाऊँ


कुछ भगवान का आशीर्वाद

कुछ मेरी किस्मत कहो

फजीहत मे पड़ने के बावजूद

मैं अपने गंतव्य तक पहुँच गयी !


अपने आप पे भरोसा रखें

मुश्किलों मे तो बहुत ज्यादा

वो दौर चला जायेगा

आपका जेहन याद कर मुस्कुराएगा


अपने आज को बेहतर बनाओ

अपने आपको काबिल बना

बाकि सब तो देख सुनके बन ही जायेंगे

ये था मेरा अकेला सफर

एक दुर्गम पहाड़ी तक का।


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