वो उमंग की परछाई थी, रात्रि बड़ी सुखदायी थी। वो उमंग की परछाई थी, रात्रि बड़ी सुखदायी थी।
स्वेच्छा को साकार जो कर दे, बनना ऐसे तुम विरले। स्वेच्छा को साकार जो कर दे, बनना ऐसे तुम विरले।
थक जाने पर कुछ देर राह में विश्राम कर पुन: चल पड़ते हैं अपने लक्ष्य की ओर… थक जाने पर कुछ देर राह में विश्राम कर पुन: चल पड़ते हैं अपने लक्ष्य की ...
ये था मेरा अकेला सफर एक दुर्गम पहाड़ी तक का। ये था मेरा अकेला सफर एक दुर्गम पहाड़ी तक का।
हवा से बातें करती अपने गंतव्य पर पहुंचाती, साइकिल चली रे, हवा से बातें करती अपने गंतव्य पर पहुंचाती, साइकिल चली रे,
कश्मीर से कन्याकुमारी तक, मैं ले चली यात्रियों को अपने! कश्मीर से कन्याकुमारी तक, मैं ले चली यात्रियों को अपने!