STORYMIRROR

VIPIN KUMAR TYAGI

Abstract

4  

VIPIN KUMAR TYAGI

Abstract

साईकिल चली रे Prompt 11

साईकिल चली रे Prompt 11

1 min
23.9K

चली- चली रे, साइकिल चली रे,

हवा से बात करती,

अपने गंतव्य पर पहुंचाती,

साइकिल चली रे,


गरीबों की सवारी,

अमीरों के व्यायाम का साधन बन चली

चली रे, साइकिल चली रे,

दोपहिया वाहन बन चली रे,

एक अतिरिक्त सवारी को लेकर

चली- चली रे साईकिल चली रे,


बिना प्रदूषण किए,

बिना किसी खर्च के चली - चली रे,

साइकिल चली रे,

आज सभी वाहन करते डीजल व

पेट्रोल का प्रयोग,


बढ़ाते वायु प्रदूषण,

इन सभी का समाधान बन चली

चली रे, साइकिल चली रे,

अनेक परिवर्तन इसके आकार में आये,

अनेक परिवर्तन कर इसकी गति बढ़ाई,

तभी आधुनिक वाहन वन चली - चली रे,

साइकिल चली रे,


आज आधुनिक विश्व की,

समस्त विश्व की सवारी बन चली - चली रे,

साइकिल चली रे,


विकसित व विकासशील

देश सवारी बन चली - चली रे,

साइकिल चली रे ,

चली -चली रे, साइकिल चली रे,

हवा से बातें करती

अपने गंतव्य पर पहुंचाती,

साइकिल चली रे,


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract