रात्रि बड़ी सुखदायी थी
रात्रि बड़ी सुखदायी थी
प्राणाग्नि सी जलती रही,
सुख स्वप्न बन चलती रही,
नव-दीप लेकर आई थी,
रात्रि बडी़ सुखदायी थी।
तम जिसका दीप्तिमान था,
निष्प्राण वो प्राणवान था,
आशाएं जगमगाई थी,
रात्रि बड़ी सुखदायी थी।
गंतव्य पथ पर हम चले,
सौ-सौ कमल दल फिर खिले,
वीणा मधुर झनकाई थी,
रात्रि बडी़ सुखदायी थी।
उल्लास हिय में है हिलोरता,
भावों की परतें टटोलता,
वो उमंग की परछाई थी,
रात्रि बड़ी सुखदायी थी।