प्रेम....दिल और दिमाग
प्रेम....दिल और दिमाग
कितना अवसाद भरा होता है
वो प्रेम
जिसमें इक धड़कता हुआ दिल,
जा लिपटता है.....तेज रफ्तार से
दौड़ रहे दिमाग से
वो दूर तक
घिसटता जाता है लहूलुहान,
फिर भी
ढीली नहीं करने पाता
अपनी पकड़.....बस इस उम्मीद में
कि शायद
उस दिमाग के किसी कोने में
.....बसता हो कोई दिल
लेकिन वो भोला सा दिल
जानता ही नहीं
कि दिमाग के पास दिल नहीं होता,
दिमाग के हर हिस्से में
बसते हैं सिर्फ और सिर्फ
सैंकड़ों छोटे छोटे दिमाग
बस दिमाग.......दिल नहीं।