उल्फ़ते दौर
उल्फ़ते दौर
कुछ रोज पहले मनचले दिल में
कोई आवाज़ सी खनकी
उल्फ़ते दौर का भी वो क्या कारवा होगा
कहकहे के साथ गुप्तगू लफ्जो का जहाँ भी होगा
क्या कहे उससे जिससे मन के तार मिले
इतना कि वक्त बेवक्त
उसी का ख्याल सरमाया हो
कहने की इतनी भी क्यों बेक़रारी
कि समझने में हो दिक्कत
और सपने ही हो सारे
क्या वो कुछ कहना ही सबूत है
तो मन मिलने का भी कोई वजूद है
जिसमें गड़ित के सवालों सा तिगड़म
और उत्तर को साबित करे
इतनी गठजोड़ ही करना हो
तो कोई प्यार ही क्यों करे
मुझे तो समझ नहीं आता
किसी को जानते जानते प्यार होता है
या अनजाने ही इकरार होता है
सब पता करके जानकारी इकट्ठा
करके तो कोई नौकरी पाने के लिए जरुरी है
क्या सीधा व्यवहार और सच्ची कोशिश नाकाफी है
तो इसमें मासूमियत और सच्चाई तो है ही नहीं
प्यार तो दूर ये तो महाभारत की लड़ाई ही हो गयी
कि युद्ध है और युद्ध जितना है
लड़ाई और प्यार में अंतर होता है
एक तरफ खंजर और दूजे तरफ
एहसासों का समंदर होता है
अब ये आपकी सोच है जो
आपको कही से कहीं ले जाती है
और ये आपकी ही ज़िन्दगी है जो
आपके निर्णय की प्रतीक है
प्यार कोई खोने और पाने,
जितने और हारने का खेल नहीं
ये अहसास है इसे महसूस कीजिये
इसको चीजों से ना तौलिए
बल्कि संभाल के रखिये
कभी गम वाले भी अहसास होते
कभी ख़ुशी वाले जज्बात होते
कागजी करवाई
दुनियादारी, रुस्वाई
और ना जाने क्या क्या
ये अहसास है
आँखों से बह जाये
या गुस्से में उतर जाये
कहकहे में बस जाये
या शब्दों से कह जाये
इसके अनेक रूप होते हैं
कुछ कह जाते
कुछ बिन कहे मन में बस जाते हैं
मैं शायद कुछ नासमझ हूँ
पर मुझे अपनी नासमझी से भी प्यार है
प्यार और दुनियादारी
एक साथ ना हो पाती मुझसे
फायदा नुकसान सोचके कदम उठाना
ये नहीं तो वो मिल जाये ऐसा सिर्फ
चीजों के साथ ठीक हो सकता है
दिल के मामले ऐसे नहीं जँचते
जहाँ किसी और ही चीज की तलब
छायी हो वहाँ आप कहते भी तो क्या कहते
उल्फ़ते दौर का भी वो क्या कारवाँ होगा।