सख्त पर कितना ?
सख्त पर कितना ?
इतने सख्त होके जाने
क्या करने वाले है लोग
जहाँ देखो खुद की गलती होने पे भी
आरोप दूसरे पे लगाते हैं लोग !
इन व्यस्त मौसम की गलियों से
हर रोज मेरा सामना होता ही रहता है
मालूम नहीं चलता ये शब्दों का विश्लेषण
भगवान ने जाने कब बनाया है !
अब किसी के हाव भाव से
समझ ही नहीं आये क्या है
उसके मन में
तो कैसे पता चले उसके साथ
कौन सा व्यहार रखना है !
अब जो वाक़ई सही हो भी उसको तो
उसके जानने वाले ही जानेंगे
तब क्या होगा ज़ब उसे
कोई जानता ही नहीं
तो उसका जो भी हो बाकि
लोग फायदा जबरदस्त उठाते हैं
दूसरों की बातो को अपनी बताते हैं !
खुद कभी भले परेशानी झेली ही नहीं
मगर समाधान तुरंत चाहिए।
कभी भीषण आग की तपिश
महसूस तक नहीं की
पर हीरा खुद को चाहिए !
जाने कौन सी ये सरपरस्ती छायी है
हरएक को बस आसान और मस्ती चाहिए।
जबकि मुश्किल झेले बिना
मिली हर चीज सस्ती होती है
महत्व तभी पता चलता जब
उसके लिए कठिन लड़ाई लड़ी हो !
इतना सख्त होके भी
जाने क्या करने वाले है लोग।