अनकहे रिश्ते
अनकहे रिश्ते
तेरे मेरे बीच में
अशर्फियों से भी
बेशकीमती
कुछ है
कुछ आफताब सी
गर्मजोशी लिए
कुछ महताब की
सौम्यता समेटे
तुझे मुझमें
मुझे तुझ में
यूं मुकम्मल करे
ज्यों दरिया जा
संमदर का हो जाए
हमारे बीच जो मुंतजिर है
वही है
जो बेनाम कहलाता है
असल में हैं
अनकहे रिश्ते
बिना तोल मोल के
दिल से जुड़ते हैं
न कि
समाजी रिवाज जो से।