धर्म
धर्म
मुझे दिक्कत नहीं अजान से,
ना गीता, ना कुरान से,
ना फतवा, ना फरमान से,
ना बिन माँगे दिये ज्ञान से।
कुछ धर्म के ठेकेदारों ने,
इंसानों को बाँट दिया,
इंसानों की क्या बात करूँ,
भगवान को भी कहाँ छोड़ा है।
ईश्वर, अल्लाह, पेगम्बर
कितने नामों में तोड़ा है,
ये धर्म की बातें करते हैं,
ये धर्म पे चर्चा करते हैं।
ये धर्म बचाने की खातिर
मारा-मारी करते हैं,
क्या इंसानों की जान की कीमत
धर्म से बढ़कर हो गयी है।
मानवता हुई लापता
क्या इन्सानियत भी सो गयी है।।