ग़म के खरीददार
ग़म के खरीददार
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हम तो अपने गम बेचते हैं खरीददार नहीं मिलते,
बिक जाए जहाँ हर गम ऐसे बाजार नहीं मिलते।
क्या जानता है कोई खुशियों का बाजार कहाँ लगता है,
खरीद लाऊँ मुट्ठी भर, खुशियों का भाव क्या रखा है।
शायद बदलने का प्रबंध भी होता हो इन बाजारों में,
मैंने गमों का खजाना छुपा रखा है।
मैं जानता हूँ मैं मोल भाव में थोड़ा कच्चा हूँ,
बेच खुशी अपनों के लिए पास गमों को रखता हूँ।
रिश्तों के बाजार में हर बार नुकसान उठाता हूँ,
जीती हुई हर बाजी हँस कर हार जाता हूँ।।