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Sandeep Firozabadi

Others

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Sandeep Firozabadi

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मेरा अहम

मेरा अहम

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ना कर घमंड रंग

रूप, बल पे ये ना रहेंगे सदा

मिट्टी में मिल जायेगा सब

जब प्राण तन से होंगे जुदा

घबरा गया ये सोचकर

घमंड करूँ अब मैं क्या

संगी, साथी, सखा,

सब छोड़ता चला गया

मैं तो ऐसा नहीं था मुझे

वक्त बदलकर चला गया

सोचा बढ़ाऊँ हाथ मिलाने को

ठहर गया फिर सोचकर

मेरा अहम मुझे फिर

मोड़कर चला गया .


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