Sandeep Firozabadi
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लाख ठोकरें खाकर हासिल क्या होता है,
दिल बोलता है सब्र कर तजुर्बा क्या मुफ्त में मिलता है.
ख़ामोशी
मेरा अहम
गलतफ़हमी
मुफ़लिसी
तजुर्बा
ग़म के खरीददा...
तकदीर
बदलाव
कोरा वहम
आँखों का तमाश...