लोक व्यवहार , नेग रिवाज़
लोक व्यवहार , नेग रिवाज़
बुआ जी का हाथों में रुपया पकड़ना,
माता जी का हमें आंखे दिखाना,
दीवाली में सहेलियों के घर जाना,
अंकल से मिठाई और चॉकलेट पाना,
याद है बचपन में समाज के समारोहों में जाना।
जहा होती थी नुमाइश किसी के
नाम की तो किसी के तिज़ोरी की,
बच्चों की बातो पर कुछ लोग लड़ लिया करते थे,
तो कुछ बड़े होंगे तो वो रिश्ता बचपन में जोड़ लेते थे।
ब्याह में क्या क्या लाई है दुल्हन
इसका भी इंतजार देखा,
आंसुओ से लथपत बूढ़े बाप की कमर का झुकाव देखा।
लालच में पैसों की दर्शन आश्रम तक हो गई,
वहीं किसी को कई व्यंजनों संग श्राद्ध करते देखा।
व्यवहार समाज का कुछ उलझा सा लगने लगता,
कभी सुलझन सुलझ जाती मेरी फंसकर ऐसी उलझनों मे।
