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कठपुतलियां

कठपुतलियां

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चला लो चाल अपनी और मैं उसमें फंस जाऊंगी,

मेरी जिंदगी की डोर है तुम्हारे हाथ में,

मैं अब तुम्हारी कठपुतली बन जाऊंगी।


अपने मुंह से ना एक बोलूंगी, 

अंगुलियों पर तुम्हारी नाच दिखाऊंगी,

जिंदगी मेरी थोड़ी है,

जो जो कहोगे तुम मैं बस करती जाऊंगी।


ना हक है मेरा तुम पर,

ना ही खुद की सांसों पर,

बस बंधी हूं इस रिश्ते से तो,

हर हां में हां मिलाऊंगी।


जो उलझ जाए मेरी डोर जिंदगी वाली,

उलझन से सुलझन को तुम्हें तकते जाऊंगी।


कहकर भी ना कह सकी वो कहानियां,

देख लेना मंच पर या कभी उसके पीछे।


मैं क्या कर सकती हूं और क्या करती रहती हूं।

कठपुतली हूं, बस दूसरों का कहना करती हूं।


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