मैं हूँ नदी
मैं हूँ नदी
पर्वतों से निकल झरनों से बहती,
अविरल प्रवाह से चलती,
मैं हूँ नदी।
शीतल जल लेकर घूमती,
जंगल में मंगल कर देती,
मैं हूँ नदी।
किसान को आशा देती,
जीवन को खुश हाल बनाती,
मैं हूँ नदी।
कोई कहे गंगा, कोई कहे यमुना,
गोदावरी कहो या कहो शिप्रा,
जल दुलारी
मैं हूँ नदी।
अब यह बात तुम को बताती हूँ,
अंधाधुंध जल दोहन की कहानी
सुनाती हूँ,
कल कल करती मेरी धारा,
मैली हुई मेरी अब काया,
फिर भी सबको यह ही बताती,
मैं हूँ नदी।
यदि मेरी तुमने नहीं सुनी,
जल से सूनी होगी हर गली,
प्यास मिटाती, सबको हर्षाती,
अब मैं दूर चली,
मैं हूँ नदी।
संभल जाओ मेरे पूत,
हो जाऊंगी मैं काल से भूत,
मेरी अस्मिता को मत लूट,
न जाने किस करवट बैठेगा ऊंट,
याद आऊंगी मैं हर सदी,
मैं हूं नदी।।
