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ARVIND KUMAR SINGH

Abstract Tragedy

4.7  

ARVIND KUMAR SINGH

Abstract Tragedy

मेरी कविता

मेरी कविता

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मेरी कविता के अन्तर्मन में

करुणामयी कशिश है क्यों

हर दिल लाखों गम छुपाऐ

है अनायास मुस्कुराता ज्यों


आश नहीं है कोई किसी से 

बाजी को किस्मत से खेला है

जूझ रहा हर कोई जुगत में 

पार पाने कैसे भी अकेला है 


शातिर तो यहां पर जो भी है

हर कोई उसे पहचानता है

गलतफहमी से रिस्ते बने रहें

इतना भी बहुत है मानता है


जरूर कोई तो पाप बोध है

जो रिस्तों के बीच में आता है

वर्ना भीड़ के बीच अकेला

क्यों हर गम को सहे जाता है


चाहे जैसी प्रलय आ जाऐ

खा जाऐ भले कोई महामारी

दूसरों को भाषण देते रहो

पर छूटे न अपनी मक्कारी


गफलत में रहता जो रहा करे

पर एक दिन तो ऐसा आऐगा

दुनिया को धोखा देता रहा वो

मौत को न चकमा दे पाऐगा।


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