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shruti chowdhary

Tragedy

4  

shruti chowdhary

Tragedy

मैं स्वतंत्र हूँ

मैं स्वतंत्र हूँ

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31


सबको उकसाती है स्वतंत्रता 

लुभाती है भ्रमित करती है

ज़िंदगी अजीब हो जाती है 

सही और ग़लत का फर्क मिट जाता है

क्रोध,जलन,अहंकार,हिंसा का 

समावेश हो जाता है

बाप बेटे का रिश्ता कड़वा हो जाता है

मां बेटी में वक्त छूट जाता है

गुरू शिष्य एक हो लेते हैं

डॉक्टर मरीज में होता तालमेल

अनजान अपने से लगते हैं

क्या अब हम हस्तें है?

क्या ये आजादी है?

भूक अभी मिटी नहीं

भीड़ अभी छटी नहीं

पत्थत बाज़ थमे नहीं

क्या ये आजादी है?

रोजगार अभी बढ़ी नहीं

सेहत अभी सुधरी नहीं

आतंक अभी हिला नहीं

क्या ये आजादी है?

धर्म की लड़ाई रुकी नहीं

पैसों की खनखन जमी नहीं

फल अभी पके नहीं

क्या ये आज़ादी है?

औरत के आसूं सूखे नहीं

किसान अपनी खेत जोति नहीं

मानव जाती खुश हाल नहीं

क्या ये आजादी है?

बच्चे स्कूल से गए वांछित

रिश्तों के ताले खुले नहीं

मजबूरी नज़रे टिकाये बैठी है

क्या ये आजादी है?

क्यों है मन खाली?

वीर सैनिक जख्मी पड़े है

सरहद पर खौफ विद्यमान है

वे लड़ते नहीं थकते

देश के लिए बलिदान है

क्या ये आजादी है?

ये विकासवाद का युग है

निराशा को तुम भरो नहीं

कर्मठ हो तुम झुको नहीं

आत्मनिर्भर बनो,डगमगाओ नहीं

विश्वास से भर लो अपना दिल

शुभ विचार धाराओं को करो शामिल

स्वतंत्र भारत की मनाओ आजादी!




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