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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

टूटे तराने

टूटे तराने

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सब ही तराने टूटे है

हम ख़ुद से ही रूठे हैं

मैं क्या गीत गुनगुनाऊँ,

हमारी साज ही लूटे हैं।


जितना हम हंसते हैं,

उतना ही हम रोते हैं,

मेरे इन आंसुओ में,

पानी भी अब सूखे हैं।


सब ही तराने टूटे हैं

हम ख़ुद से ही रूठे हैं

क्या ज़मीं, क्या पत्थर

कहीं न खिलते, भलाई के बेल-बूटे है।


फिऱ तू मत डर,

अपना कर्म कर,

रस्ते-रस्ते चलने से ही,

मिलते मंजिल के जूते हैं


सब ही तराने टूटे हैं

हम खुद से ही रूठे हैं।


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