STORYMIRROR

Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Tragedy

4  

Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Tragedy

टूटे तराने

टूटे तराने

1 min
53


सब ही तराने टूटे है

हम ख़ुद से ही रूठे हैं

मैं क्या गीत गुनगुनाऊँ,

हमारी साज ही लूटे हैं।


जितना हम हंसते हैं,

उतना ही हम रोते हैं,

मेरे इन आंसुओ में,

पानी भी अब सूखे हैं।


सब ही तराने टूटे हैं

हम ख़ुद से ही रूठे हैं

क्या ज़मीं, क्या पत्थर

कहीं न खिलते, भलाई के बेल-बूटे है।


फिऱ तू मत डर,

अपना कर्म कर,

रस्ते-रस्ते चलने से ही,

मिलते मंजिल के जूते हैं


सब ही तराने टूटे हैं

हम खुद से ही रूठे हैं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy