घर में बीते बचपन
घर में बीते बचपन


कोरोना ने मचाई है कैसी तबाही,
युगों तक वक्त देगा गवाही,
घर में बंद बचपन देता है दुहाई,
स्कूल से कब तक रखेंगे जुदाई।
ना पार्क जा रहे,
ना साइकिल चला रहे,
घर के खेल नहीं सुहा रहे,
टी वी से भी अकुता रहे।
घर में बीता जा रहा बचपन,
बड़े होते देख रहे बस दर्पण,
किस्से सुन चुके है पचपन,
व्यंजन नहीं खा पा रहे छप्पन।
डर के साए में है हम सब,
सतरंगी खुशियां देखेंगे कब,
कितनी लहरें आएंगी और अब,
बचा ले दुनिया को मेरे रब।।