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Dr Lalit Upadhyaya

Action Others

4.0  

Dr Lalit Upadhyaya

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प्रकृति का मंगल

प्रकृति का मंगल

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जल. जमीन और जंगल, करते प्रकृति का मंगल।        

खुले में कहीं नहीं रहे मल, रोगमुक्त होगा हमारा कल।।       

भूल हम जो कर रहे हैं, जल, जंगल, जमीन को छेड़ रहे हैं।  

आज जो बीत गया चलो सही है, लेकिन कल को किस पर छोड़ रहे है।।   

जंगल में हमने कटाई, देखो गर्मी ने आग लगाई।        

कान खोलकर सुन लो भाई, प्रकृति फिर नहीं करेगी सुनवाई।।

आबोहवा को दूषित किया, कोरोना ने जब कष्ट दिया।       

सबने घर में मांगी दुहाई, वायरस से कैसी आफत आई।।   

अभी नहीं तो कभी नहीं, यह फरमान आ गया है।         

प्रकृति को छेड़ने वालों, इसलिए आज मौत का साया छा गया है।


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