बेरोजगारी और भूख
बेरोजगारी और भूख
बेरोजगारी की उपज भुखमरी होती है
जो व्यक्ति के माँस को सोख
अंदर ही अंदर खा जाती है शरीर को
इस तरह एक शरीर का ख़त्म होना
भयावह है,
जिसका इलाज़ तो है
पर इस "न करने में" जो कारण है
वे बनाये रखना चाहते हैं इस विषमता को
क्योंकि इसी बेरोजगारी और भुखमरी का भय
जन्म देता है न जाने कितने ही
अपराधों को,
हथियार बनता है
नेताओं और कट्टरपंथियों के स्वार्थों का
जो "भूख" आवश्यकता है जीवन की,
ताकत है यही "भूख" उन सत्ताधारी वर्गों की।
