दर्द का सागर
दर्द का सागर
इक दर्द का सागर है
मैं बैठा उस तट पर
उठती लहरें
घबराता मन मेरा
सागर की लहरों से
बहता नीर चला आता
कुछ मेरे पैरों नीचे
घिर जाता मैं सागर में
एक दर्द का सागर है
मैं बैठा उस तट पर
नयन नीर बहाता हूँ
अश्रु बन सरिता
मिल जाता सागर में
इक दर्द का सागर है
मम अश्रु दरियाओं से निर्मित
मेरा आराध्य
जाऊं कहाँ तट से
तज निज आराधन को।
