पीड़ा
पीड़ा
कशमकश सी थी ज़िंदगी में,
मौत सामने खड़ी थी,
आज अंतर्मन में, वेदना बड़ी थी।
माँ-बाप का दिल दुखाया
जिसकी पीड़ा बड़ी थी।
जीती अवस्था में पश्चाताप कैसे करूँ,
बीतती जा रही घड़ी थी
मौत से ही मोहलत माँगी,
पर वो आज अकड़ में खड़ी थी।
बोली,"आज बस इतनी मोहलत दूँगी कि
तेरे इंतजार तक तेरा इंतजार करूँगी।
सिर्फ पीड़ा थी,गरीब-लाचार सी ज़िंदगी थी।
कहीं पढ़ा ध्यान आया,
"मौत भी मुफ़लिसों को मौका नहीं देती।"
बड़ी मुश्किल घड़ी थी।