बचपन
बचपन
अल्हड़ सा बचपन,
बेफिक्र भागता दौड़ता, रेत के टीले बनाता बचपन।
चंद रिश्तों के साथ मनपसंद उड़ान भरता बचपन।
नीले आकाश की चादर ओढ़े,
हरी घास से मित्रता निभाता बचपन।
कागज की नाव तैरा, उन्मुक्त खयालों को बुनता बचपन।
न कोई चिंता, न फिकर, मदमस्त, बेरोकटोक,
लंबी छलांगों को भर, इठलाता बचपन।
ना तेरा, ना मेरा, हर तरफ, हर माहौल में,
अपनापन निभाता बचपन।
मांँ के सीने से लिपट, पिता के कंधे पर बैठ इतराता बचपन।
ईर्ष्या, राग, द्वेष, दुर्वचन, सच-झूठ की राहों को,
अपने पाक ख़यालात से कुचलता बचपन।
यह वक्त, वह वक्त, रिश्ते नाते सब बदल गए,
नहीं बदला तो बस छोटा सा, मासूम सा, प्यारा सा बचपन।
दुनिया भर के जंजालों से मुक्त,
मतवाला,पाक,सुहृदय,..
अपने ही रंगों में रंगा,
अपनी ही कलाकारियों पर.....इतराता बचपन।