स्त्री-शक्ति
स्त्री-शक्ति
स्त्री
जब-जब तुम्हें परिभाषित करने बैठी,
शब्दों में तुम्हें पिरोने बैठी,
आदि भी तुम थीं,अंत भी तुम थीं।
कभी मांँ बन सृष्टि के सृजन में तुम थीं,
तो कभी जगदंबा बन,दुष्टों के विनाश में तुम थीं।
तुम्हारी शक्ति ने महाभारत रच डाला,
सीता रूप में सभ्यता और त्याग का पाठ पढ़ा डाला।
पत्नी बन,पति के विश्वास में तुम थीं।
मांँ बन,जग के कल्याण में तुम थीं।
जौहर ले कुल रक्षा भी तुमसे,
कहीं सती बन कुल की लाज भी तुमसे।
अपने अस्तित्व का परचम तुमने,
हर युग में है लहराया,
जल,थल और आकाश को जीतकर,
देश को स्वर्ण पदक दिलवाया।
जल की परी 'आरती' बनी,
'उषा' के दौड़ते कदमों को कोई छू ना पाया,
'कल्पना' की उड़ान बनकर अंतरिक्ष पर झंडा फहराया।
उस युग से,इस युग तक,
स्त्री तुम्हारा अद्भुत चरित्र,
तुमने अपने वजूद से मकान को एक घर बनाया,
ममता,त्याग और संवेदनाओं का हर एक को पाठ पढ़ाया,
मुमताज रूप में प्रेम का सुंदर इतिहास रचाया।
स्त्री शक्ति के आगे तो हर कोई है नतमस्तक,
पुरुष संग कंधे से कंधा मिला तुमने अपना अस्तित्व दर्शाया।
अद्भुत और अजब सी भक्ति,
स्त्री तुममें है सचमुच शक्ति।