एक नया बदलाव
एक नया बदलाव
एक नई सोच, एक नया बदलाव।
चूड़ी-कंगन बेशक कभी उसकी पहचान रहे हैं।
पर आज, सब के दायरे से निकल पड़ी है,
एक नई सोच की नारी....
फर्ज आज भी निभाती है, पर बेबाक जीती है।
दयनीय, पराधीनता और कोमलता को
अपनी आत्मनिर्भरता का आँचल ओढ़ा देती है।
संयम आज भी रखती है पर निर्णय खुद लेती है।
कोमल आज भी है पर हौसले बुलंद रखती है।
ये आज की नारी है जो हर-एक पर भारी है।
आज खुद को साबित करने को कहीं चंडी,
तो कहीं दुर्गा नहीं बनती है...,
उसके स्वाभिमान, आत्मनिर्भरता को देख,
दुनिया खुद ब खुद उससे से डरती है।
हाँ प्रताड़ित हो तकलीफ सही थी उसने,
पर जाने के बाद भी निर्भया बन,
दरिंदों के लिए फाँसी चुनी थी उसने।
एक नई सोच की नारी...
लोग क्या कहेंगे की बेड़ियों में, खुद को नहीं जकड़ती है।
आसमान में स्वच्छंद पक्षियों की तरह,
हर क्षेत्र में, हर पद में और हर एक के दिल में
अपने गुणों से जगह बना लेती है।
ये है आज की नारी..
जो पतिव्रता का चोला अब उतार चुकी है,
हमजोली बन कदम से कदम मिला, निकल पड़ी है।
आज वह किसी सहारे की मोहताज नहीं,
किसी का उपकार न ले अहंकार सर माथे रखती है।
अपने अटल इरादों से, अपनी शर्तों पर जीती है।
ये आज की नारी है, हर बदलाव हँसते हुए सहती है।