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Anil Jaswal

Tragedy

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Anil Jaswal

Tragedy

महंगाई कभी नहीं हारती

महंगाई कभी नहीं हारती

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मैं एक,

मध्यमवर्गीय परिवार मेंं जन्मा,

हमेशा पैसेे की,

किल्लत देखी,

न मालूम कब,

पिताजी का वेतन आया,

और कब खत्म हुआ,

इसका अनुमान न लगा।


बच्चों की मांगें ही,

कठिनाई से,

पूरी कर पाते थे पिताजी,

न अपने लिए,

कुछ ला पाते,

और न मां के लिए।

जब कभी  बात हुुई ,

अपने लिए ‌लाने  की,

तो बोला,

ये सब कालेेेज जाने वाले,

सब फैशन केे मारे,

नये नये दोस्तों से मिलते,

आज इनका जमाना है,

मेरा कल,

पीछे छूट गया।

ये कहकर,

अपनी इच्छाएं दबाना,

और बच्चों  को,

खुश कर देना,

शायद ये कला,

कोई उनसे अच्छी,

वलां कौन जाने।


ये कम पैसों में  निपटना,

उपर से महंंगाई  का झटका,

मेरे माता-पिताजी से  अच्छा,

कौन सह पाता।


आज भी यही,

हिसाब-किताब चलता,

मुझे ऐसा लगता,

इससे मेरा,

चोली दामन का साथ,

हम दोनों,

एक दूसरे को,

छोड़ने को  नहीं तैयार,

कई बार तो,

इसने ऐसा आभास दिलाया,

जैसे ये हमारी बहना,

जितना भी कर ले  तंग,

आखिर सबने,

इसी को   चाहना।


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