***ज़िम्मेदार****
***ज़िम्मेदार****
ज़िंदगी से ही अपना सब कुछ हार रहा हूँ मैं
खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहा हूँ मैं
चेहरे पर हँसी हैं अभी पर सच में रो रहा हूँ मैं
रिश्तों से क्या अब दोस्तों से भी बिछड़ रहा हूं मैं
हाँ मैं अभी बहुत मजबूर हूँ ,हाँ मैं एक मजदूर हूँ
न जाने क्यो फिर भी चले ही जा रहा हूँ मैं ।
शान बघारता था अब सबके आगे झुक रहा हूँ मैं
जिंदा हूँ पर लाश अपने कंधे पर ढोये जा रहा हूँ मैं
सफलता का राग अलापते ,असफल हो रहा हूँ मैं
अपनो के बीच भी पराया होता जा रहा हूँ मैं
हाँ मैं अभी बहुत मजबूर हूँ ,हाँ मैं एक मजदूर हूँ।
न जाने क्यो फिर भी चले ही जा रहा हूँ मैं।
रोटी कमाने गया अब रोटी खाने को ही तरस रहा हूँ मैं
उदास सफलता की प्यास ,पानी तलाश रहा हूँ मैं
पिलाने वाले बहुत है पर उनको नजर नहीं आ रहा हूँ मै
अपनी इस स्थिति का क्या 'नीतू' खुद ज़िम्मेदार हूँ मैं
हाँ मैं अभी बहुत मजबूर हूँ ,हाँ मैं एक मजदूर हूँ
ना जाने क्यो फिर भी चले ही जा रहा हूँ मैं।