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Manju Rani

Tragedy Inspirational

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Manju Rani

Tragedy Inspirational

मेरा चमन

मेरा चमन

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महकता है यह चमन ,

चहकता है यह गगन,

फिर भी न जाने क्यों

दहकता है यह मन ।

चिंगारी-सी सुलगती है

देख कर यह हलचल हरदम ,

कभी यहाँ धुआँ उठता है

कभी वहाँ ,

न जाने क्यों सुलगता है यह चमन ।

नफरत की आग

भड़कती रहती है हरदम,

इंसान भूल गया करना नमन ,

रह गया बस उसके अंदर अहम् ।

कहाँ गया वह मेरा वतन

जहाँ झूठे बेर भी किए थे ग्रहण ,

जहाँ अहिंसा से जीता था यह चमन,

जहाँ गीता और कुरान

एक ही छत के नीचे करते थे शयन ।

कहीं खो गया है वह मेरा वतन

अभी मुझे ढूंढना है अपना वह चमन।

आओ कुरेद डाले हम अपने मन

जहाँ बसते हैं नफरत के आँगन ।

आओ वह जड़े ही काट दे हम

जो फैलाती हैं दहशत के भ्रम

और करती हैं

इंसान को इंसान से जुदा हरदम ।

आओ खाएं यह शपथ आज हम

मिटायेंगे आतंक हर हाल में हम ।


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