किसान
किसान
मैंने बारिश के बूँदो से पूछा
ऐ बारिश कि स्वच्छ बूँदे
क्या तुम्हें पता होता है?
घने काले बादलों से
निकलकर कहाँ गिरते हो ?
पेड़-पौधे, झरने, नादियाँ
या सुखी मैदान में,
गगन चूमती इमारतों पर
या तपती रेगिस्तान में ।
एक किसान की विनम्र
निवेदन है तुमको मेरा भी,
कभी बरस जाओ उनके घर,
आँगन, खेतों और खलिहान में।।
आज भी राह देखते हैं
आसमान की ओर एक टक
कभी तो बारिश होगी
सुबह नहीं तो शाम तक ।।
लगाए थे धान की फसलें
अब सुखने लगे हैं,
पौधों के नीचे कंसो की
जगह दरारें फूटने लगी हैं ।।
फ़िकर इस बात की
नहीं है
फसल ना होने से क्या खाऊँगा?
फ़िकर तो इस बात का है,कि
लिया क़र्ज़ कैसे चुकाऊँगा।।
हालात ये देखकर अब तो
माँ भी बाबा से रूठने लगे हैं,
बेटी के हाथ पीले करने के
सपने भी अब टूटने लगे हैं ।।
जानता हूँ धरती का सीना चीर कर
बहुत फ़सल उगाया था उसने,
तभी तो दो वक़्त की रोटी खा कर
क़र्ज का सिर्फ ब्याज चुकाया था उसने ।।
जानता हूँ ये धरती बलिदान
और ख़ून माँगती है,
तभी तो वो बेबस किसान,
मर्यादा की सीमा लाँघता है।
जीने की चाह उन्हें भी थी ,लेकिन
दोस्ती उस पेड़ से भी निभाता है
और पेड़ की डाली पर लटक कर
मौत को गले लगाता है।