उलझन
उलझन
मैंने वादा किया है कभी किसी से
कि हर पल, हर दिन मुस्कुराऊँगा ।
ओ कोई याद भले ही न करे मुझको
पूरा ज़िन्दगी उनके यादो में बिताऊँगा।।
मुझे याद रखने की आदत हैं ,सो याद है
उन्हें भूलने की आदत है,याद न दिलाऊँगा ।
अगर वो मिल भी गई कही पर कभी
उस मोड़ पर, हँस कर निकल जाऊँगा।।
रेगिस्तान में चलने का फैसला मेरा था
गर्म हवा को सहने का आदि हो जाऊँगा ।
माना बसंत सी बहार नहीं आता यहाँ
नागफनी के फूलो से दिल बहलाऊँगा।।
मेरी हर दुआ में उनका नाम शामिल हैं
वो साथ नहीं हैं ,तो ,क्या मैं मर जाऊँगा ?
समय के धारा में अब बहते चले जाना हैं
रुक कर कही किनारे में घर नहीं बनाउंगा।।
जब तक दिल धड़कता हैं और साँसें चलेगी
एक राज है सीने में,किसी को न बतलाऊँगा ।
जिन्दगी को कविता समझ लिखता रहूँगा
हर शब्द को अब उसके नाम कर जाऊँगा ।।”