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Churaman Sahu

Tragedy

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Churaman Sahu

Tragedy

*छोड़ गये .....मेहंदी वाले हाथ ..*

*छोड़ गये .....मेहंदी वाले हाथ ..*

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गाँव के मिट्टी की ख़ुशबू और अपनों का प्यार लिए, 

एक जवान फिर से देश की सरहद की ओर चल पड़ा, 

गजब की यारी देखी है, उसकी अपने वतन के साथ, 

मेहंदी वाले हाथों को छोड़ वह अकेला निकल पड़ा।


जुबाँ ख़ामोश थी, मगर आँखों ने बहुत सवाल किए,

जाना ही था अकेले, तो फिर संग सात फेरे क्यो लिए?

कैसे समझाता उसे, मेरा वहाँ जाना कितना जरुरी है।

उसके साथ जी लूँगा और कभी, वतन को ज़रूरत मेरी है।


आखिर वह भी पहुँच ही गया जंगलो के बीच उस मैदान में, 

अब भी खून में जोश बहुत है, दुश्मनों से अब न घबरायेंगे ।

निकले हैं सिर में कफ़न बांध कर,मार गिराएँगे या मिट जाएँगे,

खेलेंगे आज दुश्मनों के खून से होली और सबक़ सिखलाएँगे।


किसी को हाथों- पैरों में, तो किसी को सीने में लगी गोली,

वो तो था माँ का बहादुर बेटा, जो लड़ते-लड़ते शहीद हुआ।

थी भयानक वह रात, जो कट गयी और दिन निकल आया,

सारे आतंकी ढेर हुए,फिर से *“तिरंगा”* हवा में लहराया।


वीर जो हुआ शहीद, तिरंगा में लिपटा हुआ जब गाँव आया,

गूँज उठा आसमाँ भी, अमर शहीद और जय हिन्द के नारों से।

दोस्त,भाई,और माँ-पिता न जाने कितनों का साथ छोड़ गए

छोड़ गए मेहंदी वाले हाथ,और किसी के सारे सपने टूट गये।



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