भूत
भूत
बीती जिंदगी,बीता लम्हा लौट नही आता है
फिर भी हर कोई भूत में ही समय गंवाता है
ये भूत सुख बहुत कम,दुःख बहुत देता है,
फिर भी ये ज़माना भूत को ही अपनाता है
ये भूत की अक्ल हमारी,लग रही है बेचारी,
जो चला गया उसे क्या देना ये नाव हमारी,
जिंदगी की नाव इस दरिया में डुबाता वही है,
जो नही खाता है,कभी वर्तमान का दही है,
भूत से हमारी यारी वर्तमान पे पड़ती है भारी
ये भूत हमारे जख्मो पे नमक डालने आता है
बीती जिंदगी,बीता लम्हा लौट नही आता है
अब भी समय है,तोड़ दे तू भूत के पहिये है
ये वर्तमान ही खुशियों को लेकर आता है
ये भूत, उन्हीं को भूत बनकर सदैव डराता है,
जिनकी रूह में अंधेरा आता और जाता है
तू आंखे खोल वर्तमान में,तू चल वर्तमान में,
वर्तमान ही इस जिंदगी को जन्नत बनाता है।